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महिला सशक्तिकरण

11 जुलाई 2018

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महिला सशक्तिकरण आज के समय में एक ऐसा शब्द है जिसे हम आये दिन अखबारों, टेलीविजन इत्यादि में देखते तथा सुनते रहते है|पर क्या आजादी के 70 साल पूरे होने के बाद भी देश को महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता है? क्या महिला सशक्तिकरण आज के समय में बस एक राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गया है? या देश को वास्तव में इसकी अभी भी जरूरत है|

आखिर महिला सशक्तिकरण है क्या और इसके क्या मायने है?

महिला सशक्तिकरण को बेहद आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाएं शक्तिशाली बनती हैं, जिससे वो अपने जीवन से जुड़े फैसले स्वयं ले सकती हैं| जैसा कि हम सभी जानते है कि भारत एक पुरुषप्रधान समाज था, जहाँ पुरुष का हर क्षेत्र में दखल था और महिलाएँ सिर्फ घर- परिवार की जिम्मेदारी उठाती थीं| साथ ही उनपर कई पाबंदीयाँ भी होती थीं| महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वारा कई कारणों से दबाया जाता था| उनके साथ कई प्रकार की हिंसा होती और परिवार व समाज में भेदभाव भी किया जाता| महिलाओं के लिये प्राचीन काल से समाज में चले आ रहे गलत और पुराने चलन को नये रीति-रिवाजों और परंपराओं में ढ़ाल दिया गया था| जिस कारण से उनके विकास में बाधा उत्पन्न हो रही थी|

भारत की लगभग 50 प्रतिशत आबादी केवल महिलाओं की थी मतलब पूरे देश के विकास के लिये इस आधी आबाधी की जरुरत थी जो कि सशक्त नहीं थी और कई सामाजिक प्रतिबंधों से बंधी हुई थी| ऐसी स्थिति में हम नहीं कह सकते थे, कि भविष्य में बिना हमारी आधी आबादी को मजबूत किये, हमारा देश विकसित हो पायेगा| इसलिए महिला सशक्तिकरण की आवाज उठी|

इसके बाद महिला सशक्तिकरण के लिए अनेक कदम उठाये गये| महिलाओं के खिलाफ होने वाले लैंगिक असमानता और बुरी प्रथाओं को हटाने के लिये सरकार द्वारा कई सारे संवैधानिक और कानूनी अधिकार बनाए और लागू किये गये| महिलाएँ अपने स्वास्थ्य शिक्षा नौकरी तथा परिवार देश और समाज के प्रति जिम्मेदारी को लेकर ज्यादा सचेत रहने लगीं| वो हर क्षेत्र में प्रमुखता से भाग लेती और अपनी रुचि प्रदर्शित करती| अंतत: कई वर्षों के संघर्ष के बाद सही राह पर चलने के लिये उन्हें उनका अधिकार मिला|

परन्तु कुछ आसामाजिक तत्वों के कारण महिलाओं को दिए अधिकारों का गलत इस्तेमाल होने लगा| दहेज़ तथा छेड़छाड़ के कई मामले फर्जी निकलने लगे| हद तो तब हो गई जब बलात्कार जैसे संगीन जुर्म के आरोप भी झूठे निकले| आज महिला सशक्तिकरण बस एक राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गया है| आज जब भी कोई महिला किसी पुरुष पर आरोप लगाती है तो पूरा समाज बिना किसी जानकारी के उस पुरुष को आरोपी मान लेता है| कई महिला संगठन भी बिना किसी जाँच के पुरुष को आरोपी सिद्ध करने में लग जाते है| ये अच्छी बात है कि समाज आज महिलाओं के साथ है परन्तु हमें ये समझना होगा कि हर बार पुरुष ही गलत नही होते| अगर इसी तरह महिलाओं को प्राप्त अधिकारों का दुरूपयोग होता रहेगा तो फिर महिला सशक्तिकरण का वजूद ही नही रहेगा|

आज ये देखकर अच्छा लगता है कि महिलाएं पुरुषों से आगे निकल रहीं हैं| देश के विकास में महिलाओं की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है| परन्तु अभी भी कुछ गाँव और शहर ऐसे है जहाँ महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखा जाता है| प्राचीन काल से ही पुरुष और महिला एक रथ के 2 पहिये रहे है| अगर ये दोनों साथ साथ नही चले तो जीवन रुपी रथ आगे नही बढ़ पाएगा| इस कथन को हमें समझना होगा तथा इसे अमल में लाने के लिए हरसंभव प्रयास भी करने होंगे|

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