मै जनम जनम तुझे चाहूँगा,
मेरा जीवन यूँ ही कट जाये !
मेरा प्यार नहीं है चाँद सनम,
जो पूरा होकर घट जाये... !!
चाँद कहते हुए डरता हूँ तेरे चेहरे को
मै तेरे रूप को घटते हुए कैसे देखूँ
रोशनी बनके रहा है जो मेरी आँखों मे
उसको साये मे सिमटते हुए कैसे देखूँ... ?
एक पल भी न रहा दूर कभी तू मुझसे
किस तरह तेरी जुदाई को गवारा कर लूँ
तेरी आखों से जिन होठों ने कई जाम पिये
उनसे मै प्यास लिपटते हुए कैसे देखूँ... ?
जिस जुबाँ से तुझे एक उम्र कहा है अपना
वो जबाँ अलविदा कहते हुए शर्माती है
जो मेरे दिल की तसल्ली के लिए रखा है
हाथ सीने से हटते हुए कैसे देखूँ...?
भीगी भीगी ये हवायें ये तेरा साथ सनम
यूँ ही चलते रहें हाथों मे लिए हाथ सनम
ऐसे मौसम मे भला कौन रहेगा तनहा
शाम तेरे बिना कटते हुए कैसे देखूँ... ?
:- डॉ राजेश पाण्डेय