खो गये कहाँ तुम...
ज़िंदगी की भीड़ और धुंध के खयालों मे
ढूंढती है ये नज़र मंदिर और शिवालों में
दे के रोशनी मुझे गुम हुए उजालों में
कैसे मै बंद करूं रूह को मै तालों में
फिर भी न जाने खो गये कहाँ तुम.....
हम तुम मिले थे कभी एहसास होता है
मायूसी हँसती है दिल मेरा रोता है
पत्थरों के बीहड़ से रास्ते निकलते हैं
आइने के टुकड़े टुकड़े चेहरे बदलते हैं
खामोशियों की ज़ुबां घेर ली सवालों में
फिर भी न जाने खो गये कहाँ तुम.....
एक बार आके सनम बाहों मे थाम लो
मुझको पुकारो तुम फिर से मेरा नाम लो
गूंगी लूली लंगड़ी इस अपाहिज ज़ुबां को
सुनसान कर गये मेरे दिल के मकाँ को
छोड़ा था लाके जहाँ प्यार के निवालों में
फिर भी न जाने खो गये कहाँ तुम.....
सदमा है दिल मे मेरे बेचैनी उलझन है
देखूं निहारूं कहाँ कौन सा वो दरपन है
एक बार इन होठों को अपना पता दे दो
पहचान जाऊँगी धड़कन की सदा दे दो
आ मै डुबो दूं तुझको मस्ती भरे प्यालों में
फिर भी न जाने खो गये कहाँ तुम.....