मैं अधूरा पड़ा संकलन की तरह,
मैं तुम्हें गुनगुना लूँ ग़ज़ल की तरह,
तुम मुझे खुल के गाना भजन की तरह।
तुम बनो राधिका तो तुम्हारी कसम,
कृष्ण-सा कोई वादा करूँगा नहीं,
जानकी बन के आओ अगर घर मेरे,
राम जैसा इरादा करूँगा नहीं।
प्रेम के यज्ञ में त्याग की आहुति-
डाल दो, मन जला है हवन की तरह।
माना गंभीर हम वेद जैसे रहे,
किंतु तुम भी ऋचाओं-सी चुप-चुप रहीं,
बंधनों के निबंधों को मैंने लिखा,
फिर भी नूतन कथाएँ न तुमने कही।
प्रीति-पथ पर चलें, साँझ से क्यों ढलें?
तुम थकन की तरह में सपन की तरह।
मैंने चाहा बहुत, गीत गाऊँ मगर,
तुमने वीणा के तारों को छेड़ा नहीं,
तुमने आने का मन ही बनाया नहीं,
रास्ता वरना घर का था टेढ़ा नहीं।
तुम तो सौभाग्यशाली रही हो सदा,
भाग्य अपना बना है करण की तरह।