बोलो बोलो मेरी बस्ती का समां कैसा है !
धुंधलका सुबह का शामों का धुआँ कैसा है !!
खेत खलिहान कुएँ बाग़ बता कैसे हैं !
फ़सले गुल कैसी है अंदाज़े सबा कैसे हैं !!
जिनकी आवाज़ पे सर झुकते हम लोगों के !
वो जाने जिगर कैसे हैं बताओ राम कैसे हैं !!
कैसे हैं शीश महल मेरा मकां कैसा है !
बोलो बोलो मेरी बस्ती का समां कैसा है !!
गीत पनघट पे कोई आज भी गाता होगा !
अपनी आवाज़ से कलियों को जगाता होगा !!
बेखुदी इश्क की जब जब नज़र आती होगी !
हुस्न शरमा के निगाहों को झुकाता होगा !!
किस तरह हँसते हैं अंदाजे फुगाँ कैसा है !
बोलो बोलो मेरी बस्ती का समां कैसा है !!
अब भी तालाब मे यादों के कँवल खिलते हैं !
दिन के बिछड़े हुये हर शाम वहाँ मिलते हैं !!
तेल के दीप मे जो बात है बिजली मे कहाँ !
दिल हो या दामने सदचाक कहाँ सिलते हैं !!
कौन बतलाये कि अब कोई कहाँ कैसा है !
बोलो बोलो मेरी बस्ती का समां कैसा है !!
जेठ के दिन हो या जाड़ों की अंधेरी रातें !
हाय पुरवाई के झोंके वो भरी बरसातें !!
एक नश्तर की तरह दिल मे उतर जाती है !
याद जब आने लगें गाँव की भूली बातें !!
जो मेरे दिल मे बसा है वो जहाँ कैसा है !
बोलो बोलो मेरी बस्ती का समां कैसा है !!
:- डॉ राजेश पाण्डेय