प्यार की अर्थी (व्यथा की तेरहवीं)
01/-
तुमने तो व्यथा कही अपनी,
इक बात मुझे भी कहनी थी... !
दिल झूम - झूम के गाता था,
तुम ही तो घर की घरनी थी... !!
02/-
जीवन के उस अवधि तलक,
मैं प्यार करूँगा प्यार कसम... !
ये जनम जनम का नाता है,
इक दूजे पर अधिकार सनम... !!
03/-
मैं दिल से प्यार किया इतना,
हे प्राण प्रिये तुम क्या जानो... !
मन पंख पखेरू बन उड़ते,
हर बार मिले तुम क्या जानो... !!
04/-
कुछ नरम गरम तेरी बातें,
कुछ हल्की फुल्की मुस्काने... !
पागल मन हो उठता विभोर,
थिरकन होठों पे अनजाने... !!
05/-
घनघोर घटा नभ में छाई,
बोले कोयल नांचे हैं मोर... !
दिन रात इसी परिवर्तन मे,
कभी रात हुई कभी हुई भोर... !!
06/-
नयनों मे नयना डाल डाल,
हम दोनो दिल को टटोले थे... !
फिर प्रेम ग्रंथ के पन्नो को,
आपस मे मिलकर खोले थे... !!
07/-
प्यार की भाषा हृदय पटल पे,
लिखता और मिटाता था... !
सदियाँ बीत गईं दर्शन को
गीत मिलन के गाता था... !!
08/-
निशदिन पायल घुंघरू बजते,
दिल भी कई हाथ उछलता था... !
कई खुशियों उसे अपार मिलीं,
अरमाँ इस तरह मचलता था... !!
09/-
अंतिम क्रिया जब मेरी होगी,
तेरी याद भी संग जल जायेगी... !
मैं आज चला तो जाऊँगा,
मेरे पिछे तू कल आयेगी... !!
10/-
किस्तों मे बंटकर हम दोनो,
किस्सों में फकत रह जायेंगे... !
सब राख मे मिलकर धूल हुआ,
हम मिटटी में मिल जायेगे... !!
11/-
इक प्रीत के कारण जिंदा हूँ,
सपनों का महल तो टूट गया... !
कैसे और किसको मै कहता,
कोई साथी मिला था छूट गया... !!
12/-
प्रेम का रोग लगा सबको,
जो चर्म रोग से बढ़कर है... !
इसका कोई उपचार नहीं,
ये रोग तो सबसे बढ़कर है... !!
13/-
खंडहर बन दिल सूना सूना,
है मौसम का उपहार लिये... !
वो कौन खड़ी है चौखट पे,
जो है सोलह श्रींगार किये... !!
:- डॉ राजेश पाण्डेय