राज सारा का सारा छुपाती रही,
पर तेरे प्यार को मैं निभाती रही
हौसला मेरा इतना जो मज़बूत था,
आँधियों में मैं दीपक जलाती रही
नए रंग ख्वाबों में भरती रही,
बिन रुके मैं हदों से गुजरती रही
हुए ज़र्द पत्तो सी झरती रही,
नित नयी कोंपले फिर से फूटती रही
पर कतरता रहा मेरे अरमान का,
बनके पंछी गगन में बिचरती रही
राज सारा का सारा छुपाती रही.....
गरल पी कर सदा मुस्कुराती रही,
खुद के नयनो से नीर बहाती रही
कांच से आइना मैं बनाती रही,
अपने दिल को ही दिलसे बताती रही
मन के महल में लगी आग जब,
गम के साए से खुदको बचाती रही
राज सारा का सारा छुपाती रही.....
:- डॉ राजेश पाण्डेय