shabd-logo

मैं माँ हूँ

29 अप्रैल 2022

13 बार देखा गया 13
हर औरत का एक नाम होता है उसकी एक पहचान होती है।लेकिन ये पहचान किसी किसी को ही मिल पाती है।आज के समय में भी कुछ लोग अपने आप को आज के बदलते समय में भी बदल नहीं पाए।ये कहानी है मुझ जैसी माँ की।मेरा बचपन से एक हीं सपना था कि मैं खूब पढ़ू और एक दिन अपनी माँ की तरह शिक्षक बनू।मेरी माँ मेरी आदर्श थी।मैंने उनको बचपन से देखा है कि वो कैसे अपने मैं ही एक पहचान लिए हुए थी।जब गाँव की औरतें घर के बाहर नहीं निकल सकती थी उस समय मेरी माँ घर और बाहर दोनो का काम करती थी।गाँव मैं सब लोग उसकी खूब इज्जत करते थे।ना जाने कितने बच्चे को उन्होने आगे बढ़ाया था।जब भी वो बच्चा गांव आता तो माँ से मिलने आता,और उनके पैर को छूकर कहता कि वो आज जो कुछ भी है वो उनकी वजह से।यही सब देख कर मैं भी बड़ी हो रही थी।फिर मैंने अपनी शिक्षा पूरी की और जब मैंने अपने मनचाही नौकरी पाई तो लगा कि मुझको पंख लग गए हैं।पापा को चिंता थी कि मैं कैसे दूसरे स्थान पर अकेले रह कर नौकरी करूँगी।मुझे तो इन बातों से कोई फर्क नही पर रहा था,और मेरी माँ मेरे साथ थी।उन्होंने पाप को समझाया कि आज के जमाने मे कोई भी कुछ कर सकता है अपने पैरों में खड़े होने से कोई नुकसान नही है।आज लड़का और लड़की सब बराबर हैं।उन्होने कहा कि वो तो उस समय में आगे बढ़ी थी जब औरत और मर्द मैं भेद थे।किसी तरह घर मे सब मान गए।फिर मेरे जाने की तैयारी होने लगी।मैं एक दिन उस स्कूल को देख कर और जॉइन कर के आ गई।फिर पापा ने अपने एक जन पहचान वाले के यंहा मेरे रहने का ििइंतजाकर फ़ियाममत

Pallavi Priti की अन्य किताबें

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए