मैंने देखे हैं न वे दिन,
जब एक अदद जनता का,
सिर्फ एक ही बार चूल्हा जलता था,
पेट ठीक से लगा दिखता था.
एक धोती, एक चादर में,
गर्मी तो कट जाती थी,
पर...
सर्दी कंपकंपाती थी.
मैंने देखे हैं न वे दिन,
इसलिए खुद को
Self curtailed रखा है.
मैंने पढ़ा है न, बड़े-बड़े विद्वानों को,
कविता, लेखों और बयानों को,
सुनी हैं शहीदों की कहानियां,
हँसते-हँसते दे गए वतन पर क़ुर्बानियाँ,
हम कितने बौने हैं, इनके सामने,
इसीलिए खुद को unprevailed रखा है.
हाँ! इससे पहले कि भारत सो जाए,
माटी की असलियत को,
साहित्य के गलियारों,
संस्कृति की बयारों,
शहीदों के नारों को,
पूरे प्रयास से maintained रखा है.
ऐसा ही कुछ गांधी ने देखा होगा,
तभी तो एक धोती, आधे घुटनों तक,
और आधी को तन पर रख,
आन्दोलनों का व्यूह रचा होगा,
इसीलिए, मैंने cupboard में,
गिने-चुने कुछ कपड़ों को रखा है.