लोग चिल्ला रहे थे,
'राम' 'राम' से,
मुक्ति संभव है,
राम कहो,
कि, सहसा अर्थी हिली,
झल्लाकर 'लाश' बोली,
'चुप रहो' ! नाहक शोर मत करो.
जीवित रहते चेताया नहीं,
अब क्यों कहते हो,
यही सत्य है,
कि राम नाम सत्य है.
ऐसा भी क्या की मेरे विचार मुझसे बनकर मुझमें ही गुम हो जाएँ. चाहती हूँ मैं, कि ये मुझमें जन्म लें, बाहर आएं, पौधे बनें, फूल बनें, फिर फल बन जाएं, जिन्हें सभी सराहें और खाएं... D