कुछ कर सकने के एहसास से,
कहीं ज़्यादा डरावना एहसास होता.
'गर हम कुछ न कर पाये होते, तो !
कि बचपन की नादानियों के तहत,
भाई-बहनों को अपना समझते रहे,
उन्हीं पर मरते रहे,
कामयाबियों को अपना समझते रहे,
कमियों पर उनकी रोते रहे,
ऐसी नादानी के एहसास से,
कहीं अधिक अपराध बोध होता,
ऐसे नादान न होते, तो !
मित्रों का एक समूह था मेरा,
बस वे मेरे हैं, मेरे,
ऐसा विश्वास था मेरा,
उन पर जान छिड़कना,
बात-बात पर मर मिटना,
ऐसे दिल-ओ-जाँ से चाहने के एहसास से,
कहीं अधिक दुखद होता,
इस क़दर न चाह पाने का एहसास!
यह है कि बरौनी स्टेशन के लिए,
अम्मा से डलिया भर कचौड़ी बनवाना,
प्रीतपाल से हर भूखी औरत को,
चार कचौड़ी दिलवाना,
ऐसा करवा पाने के एहसास से,
कहीं अधिक घृणित होता,
ऐसा न करवा पाने का एहसास.
यूनिट के वेलफेयर सेंटर में,
सिपाही की बीवी के साथ,
दरी पर बैठकर कुछ सिखाना,
बुनना बुनवाना ,
सुबह-सुबह अण्डों को लेकर,
उनके घर पहुँच जाना,
या कुछ ऐसा ही बहुत कुछ
कर सकने के एहसास से,
कहीं अधिक अमानुषिक होता,
ऐसा कुछ न कर पाने का एहसास.
सास-ससुर को चाहना,
ससुराल को अपना ही घर मानना.
ननदें तो अति प्रिय,
उन्हें खिलाना, पिलाना, पहनाना,
और सभी कुछ वार देने के एहसास से,
कहीं अधिक स्वार्थपरक होता,
ऐसा न सोच पाने का एहसास.
मेरा जीवन तो इतिहास बन चुका,
ऐसे ही एहसासों और क्रियाकलापों का.
किस पृष्ठ पर क्या कहानी होगी,
किस पन्ने पर प्रिय,
किस पन्ने पर अप्रिय घटना होगी,
उन पृष्ठों को खुद ही
पढ़ पाने के एहसास से,
कहीं अधिक दुर्भाग्यपूर्ण होता,
इन्हें न पढ़ पाने का एहसास.
चल रही है लगातार,
आज भी कुछ कर गुज़रने की आस,
बड़ी न सही छोटी ही,
कुछ काम तो हो मेरे भाई,
इन्ही उम्मीदों का दामन थामे
चलने के एहसास से,
कहीं बदतर होता,
बगैर कुछ किए ही,
गुज़र जाने का एहसास.