मित्र से
मित्र मेरे, जो खुले नहीं,
मिले नहीं मुझसे, मेरे मित्र.
चित्र से अनबोल,
तुमने प्यार के दो बोल,
मीठे कहे नहीं,
किन्तु मेरे मित्र,
मेरे प्रिय सुदामा,
हाय! अपने कृष्ण से
चावल चुराए, फिर रहे हो,
किन्तु मुझमें नहीं कोई,
रोहिणी सा चतुर बंधन,
आस को यदि सौंप दूँ मैं,
निज ह्रदय का, विशद त्रिभुवन.