राज प्रसाद का, हर जीव चिंताग्रस्त है,
क्योंकि अजात का, नवजात शिशु अस्वस्थ है,
सूचना बाहर गई है, शिशु के हाथ में एक फुन्सी है,
पीड़ा से कुम्हला गया, पल्लव सा बदन,
रह-रह कर जननी करती रही रुदन,
तभी आता है अजात और चूस लेता है पीड़ा.
यह देख, बंदिनी अजात जननी,
सुनाती है उसे वो कहानी,
जब वे थे राजा और मैं थी रानी.
मेरी कोख में जन्मा था तू, राजकुलदीपक
तेरे भी इसी हाथ में उठी थी टीस
तेरी कराह से मेरी छाती फटी
उपचारक, अनेक विचारक
खड़े थे, किन्तु विवश, और तभी,
तेरे पिताश्री ने, ठीक इसी तरह मुड़कर
पीड़ा को अपने मुख में,
लिया था खींच और तू सो गया था.
किन्तु, चिंता न कर वत्स,
शिशु होगा शीघ्र ही स्वस्थ.
पर एक बात याद रखना,
यदि कभी बंदी बनाये,
तुझे ये तेरा ही खून,
तो सुनाना उसे ये कहानी,
ताकि भूला हुआ राह पा सके
ताकि तेरा ये पुत्र, मेरी कथा,
अपने पुत्र को सुना सके.