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मानवता का स्तर निचे गिरता जा रहा है

25 जून 2016

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featured imageसोशल नेटवर्किंग साईट जो आज जरूरत से ज्यादा लोगों की आदत बनते जा रहे हैं। बच्चा हो या बूढ़ा, आदमी हो या औरत इंटरनेट आज सबकी जरूरत बन गया है। माना विज्ञान ने आज बहुत तरक्की कर ली है। पर क्या ये नहीं लगता जितनी तरक्की विज्ञान कर रहा है मानवता का स्तर उतना ही निचे जा रहा है? कल व्हाट्स एप्प के किसी ग्रुप में एक वीडियो आया, उस वीडियो के निचे लिखा था। ये देखिये मुम्बई की एक लड़की के लाइव सुसाइड का वीडियो। उत्सुकतावश मैंने वो वीडियो डाउनलोड किया सच में एक लड़की अपनी बिल्डिंग के करीब 35 वें माले पर बनी छत की दीवार पर खड़ी थी। और सामने की ही बिल्डिंग से कोई औरत उसका वीडियो बना रही थी। ( औरत इसलिए लिखा क्योंकि उसमे अंत में उसके चीखने की आवाज थी) लड़की ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला,किसी से बात की फिर सीधे छलांग लगा दी। इतनी ऊंचाई से गिरने के कारण उसका सर फट गया था। किन्तु किसी को उस पर दया न आई। उस मृत लड़की की पिक और वीडियो लेकर वाइरल कर दी सोशल मीडिया पे। और हर कोई खुद को अपडेट दिखाने की होड़ में उसे और आगे शेयर करता रहा। ये मानव हीनता नहीं तो और क्या है दोस्तों!!! आज वो औरत जिसने वीडियो बनाया उसने न उस लड़की को चिल्लाकर रोकने की कोशिश की, न किसी को सूचित करने की जरूरत समझी, जरूरी समझा तो बस वो वीडियो बनाना। माना जिसे आत्महत्या करनी है वो करके रहेगा, किन्तु ये क्या के उसको बचाने की कोशिश ही न की जाए और उसकी मौत को महज अपडेट रहने के चक्कर में कैमरे में कैद किया जाए? ईश्वर न करे अगर उस दूसरी लड़की की जगह उसकी अपनी बेटी या बहन होती तब भी क्या वो ऐसा ही करती? यही नहीं कई बार तो ऐसी तस्वीरें देखने में आई हैं जिनको देख मानव हीनता साफ़ झलकती है , एक जगह दुर्घटना में एक परिवार का एक्सीडेंट हो गया था पति-पत्नी व छोटा सा बच्चा अपनी एक्टिवा पर कहीं जा रहे थे और रास्ते में ट्रक ने उन्हें टक्कर मार दी  , बजाय उस एक्टिवा को उठाकर यह देखने के कि वह लोग जिंदा हैं या मर गये या उन्हें उठाकर  जल्द से जल्द  हास्पिटल पहुंचाने का प्रयास करने के ,वहां खडे लोगों को पहले उनकी तस्वीरें लेना ज्यादा उचित लगा उन तस्वीरों में साफ दिख रहा था वह तीनों रोड पर गिरे हुए थे और उनकी  अपनी ही गाडी उनके ऊपर थी । किसी ने भी गाडी तक उठाने की ज़हमत नहीं की थी । वहीं एक और जगह किसी नवयुवक की बाईक फिसलने से वह लोहे के गेट पर लगे तारों पर जा गिरा जिससे उसका सर धड़ से अलग हो कर वहीं सलाखों पर अटक गया था , वहां उसके बचने की उम्मीद तो नहीं पर पर इस तरह के किसी के तारों पर लटकते हुए सर की तस्वीरें खीचकर दूसरों को भेजना कहां की मानवता है ??? धार्मिक भावनाओं को भड़काना , लड़कियों के अश्लील क्लिप फैलाना ब्लैकमेल करना और न जाने क्या -क्या ,,,,,,,,,, उफ्फ्फ् वो छत से छलांग लगाती लड़की, वो गेट की सलाखों पर लटकता सर, वो एक्सीडेंट में मृत हुआ परिवार। वो भले आपके कोई न लगते हों पर किसी न किसी परिवार के सदस्य हैं। जब घूम फिर कर उनके परिवार वालों के पास ऐसे वीडियो या क्लिप पहुचेंगे तब मुझे नहीं लगता के उनके मुँह से ऐसे लोगों के लिए दुआएं निकलेंगी। वैसे भी हमारे बुजुर्ग तो हमें यही सिखाते हैं कभी किसी की बद्दुआ नहीं लेनी चाहिए।     मैं ऐसे लोगों से इतना ही अनुरोध करना चाहूंगी कि कृप्या इस तरह अपनी मानव हीनता न दर्शायें। विज्ञान का उपयोग करें दुरूपयोग नहीं। प्रिया वच्छानी 

प्रिया वच्छानी की अन्य किताबें

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बचपन

24 जून 2016
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काश! समय को हम वापस मोड़ पाते थी जहाँ बेपरवाह जिंदगी फिर वहीँ लौट पाते सारी जिम्मेदारियों से हो जाते मुक्त तब बच जाते अपना बड़प्पन दिखाने अब लौट जाते माँ के घर फिर उसी बचपन में जहाँ न कोई जिम्मेदारी थी न कहीं बड़प्पन दिखाना था न किसी से दुश्मनी थी न ही बैरी ये जमाना था न होड़ थी आगे बढ़ने की

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मानवता का स्तर निचे गिरता जा रहा है

25 जून 2016
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निगाहें

28 जून 2016
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ये निगाहें तकती हैं तेरी राह तुझे मेरी इतनी तो खबर होगी कब आओगे तुम मेरे पहलू में कब मेरी शामें सहर होंगी कोई वादा न याद दिलाऊंगी तुम्हें न बात कसम की किसी पहर होगी बीतेंगे दिन हमारे लम्हों की तरह जब संग तेरी मेरी रहगुज़र होंगी कहीं तो रुकेगा कांरवां ये दर्द का कहीं तो मुझे भी खुशी मय्य

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