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प्रिया वच्छानी की डायरी

प्रिया वच्छानी

3 अध्याय
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priya vachhani ki dir

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पुस्तक के भाग

1

बचपन

24 जून 2016
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काश! समय को हम वापस मोड़ पाते थी जहाँ बेपरवाह जिंदगी फिर वहीँ लौट पाते सारी जिम्मेदारियों से हो जाते मुक्त तब बच जाते अपना बड़प्पन दिखाने अब लौट जाते माँ के घर फिर उसी बचपन में जहाँ न कोई जिम्मेदारी थी न कहीं बड़प्पन दिखाना था न किसी से दुश्मनी थी न ही बैरी ये जमाना था न होड़ थी आगे बढ़ने की

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मानवता का स्तर निचे गिरता जा रहा है

25 जून 2016
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सोशल नेटवर्किंग साईट जो आज जरूरत से ज्यादा लोगों की आदत बनते जा रहे हैं। बच्चा हो या बूढ़ा, आदमी हो या औरत इंटरनेट आज सबकी जरूरत बन गया है। माना विज्ञान ने आज बहुत तरक्की कर ली है। पर क्या ये नहीं लगता जितनी तरक्की विज्ञान कर रहा है मानवता का स्तर उतना ही निचे जा रहा है? कल व्हाट्स एप्प के किसी ग्रु

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निगाहें

28 जून 2016
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ये निगाहें तकती हैं तेरी राह तुझे मेरी इतनी तो खबर होगी कब आओगे तुम मेरे पहलू में कब मेरी शामें सहर होंगी कोई वादा न याद दिलाऊंगी तुम्हें न बात कसम की किसी पहर होगी बीतेंगे दिन हमारे लम्हों की तरह जब संग तेरी मेरी रहगुज़र होंगी कहीं तो रुकेगा कांरवां ये दर्द का कहीं तो मुझे भी खुशी मय्य

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