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मतलबी क्यूँ हो गए हैं ???

3 फरवरी 2016

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आज ये सवाल हर इंसान के दिल में उठता है की आज लोग इतने मतलबी क्यूँ हो गए है ? इसमें ऐसी आश्चर्य वाली कोई बात नहीं है कि ऐसा क्यूँ है ? सच तो यही है कि संसार का हर रिश्ता जरुरत का रिश्ता है, हर प्राणी एक दुसरे से जरुरत के तहत जुडा हुआ है। जब प्राणी शिशु रूप में जन्म लेता है तब वो असहाय होता है, पुर्णतः दूसरों पर निर्भर होता है। परिवार का हर सदस्य उसकी हर जरुरत में उसकी मदद करने को तत्पर रहता है, खासकर माँ।  माँ के बिना वो अधुरा है। पर एक दिन जब वो बड़ा हो जाता है तो वो आत्म-निर्भर हो जाता है, फिर भी, परिवार के हर सदस्य और संसार के हर प्राणी से उसका रिश्ता ख़त्म नहीं हो जाता। जब तक जीवन है जरुरत बनी रहेगी और कोई भी इंसान अकेला कुछ नहीं है, सब से जुड़ कर ही संसार बनता है। फिर संसार का कोई भी रिश्ता हो चाहे पति-पत्नी, माता-पिता, भाई-बहन व और अन्य रिश्ते सब जरुरत के तहत ही एक दुसरे से जुड़े होते हैं। 
हालांकि पहले के समय में भी ऐसा ही था, पर पहले ये रिश्ते सिर्फ जरुरत या मतलब से ही जुड़े नहीं होते थे बल्कि दिल और भावना से जुड़े होते थे। तभी मतलब के नहीं कहलाते थे। आज चूँकि भौतिकवादी युग है इसीलिए हर रिश्ते में भावना कम होती जा रही है और रिश्ते बस मतलब निकल जाने तक सीमित होते जा रहे हैं।  अगर हर रिश्ते से हम दिल व भावना से जुड़ जाएँ, तो हमारा हर रिश्ता स्वार्थ का न होकर निःस्वार्थ हो जाएगा; फिर वो चाहे संसार का कोई भी रिश्ता हो मानव से, पशु से या प्रकृति से। फिर सामने वाले का फायदा उठाने की बात कभी एक पल को भी हमारे दिल में नहीं आएगी, तब सिर्फ लेने की भावना या किसी भी तरह की कोई अपेक्षा हमें नहीं रहेगी बल्कि देने और और देते ही जाने का निःस्वार्थ भाव जागृत होगा । जब लोग दिल से एक दुसरे से जुड़े होंगे तब एक दुसरे की मदद को तत्पर होंगे। मतलब निकालने या फायदा उठाने की बात कभी उनके दिल में नहीं आएगी। हम सब एक दुसरे के सहयोगी बनें, एक दुसरे की मदद करें | जब हमारे दिल में प्रेम, परोपकार व सेवा के भाव होंगे तो बेशक रिश्ता तब भी जरुरत के तहत ही जुडा होगा आपस में, पर वो मतलबी रूप में हर्गिज नही होग; उसका स्वरूप ही बदल जायेगा और यही है सच्चा रिश्ता एक प्राणी का दुसरे प्राणी से। हम सब उस परम पिता की संतान हैं और मिल जुलकर प्रेम से रहना हमारा परम धर्म है !!! 

@ शशि शर्मा 'खुशी

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रचनाएँ
shabdsarita
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मन के भावों को शब्द रूप दे बही ह्रदय की शब्द सरिता
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भाव और शब्द :-

29 दिसम्बर 2015
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भावों को शब्द देना मानो समुद्र को तालाब की संज्ञा देना,,, भाव बहुत ही गहरे होते हैं, शब्दों की पहुंच वहाँ तक नही हो पाती, शब्दों की अपनी सीमितता है. वो गहरे भावों को खुद में समेट पाने में असमर्थ होते हैं. जब भी हम अपने भावों को शब्दों में जाहिर करने की नाकाम सी कोशिश करते हैं तो चाहे कितने भी शब्द प

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3 फरवरी 2016
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*** दुख व खुशियाँ***

3 फरवरी 2016
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मेरी खुशियाँ सिर्फ मेरी नहीं होती, बिखरा देती हूँ उन्हें अपने इर्द गिर्द।फिर जो भी आता मेरे दायरे में,,, वो उसकी भी खुशियाँ हो जाती हैं |भीग जाता,,, हो जाता सराबोर वो भी, उस खुशी की महक से । वो भीनी भीनी खुश्बू खुशी की, कर देती मजबूर उसे भी खुश हो जाने को। खुश हो कर खुशियाँ लुटाने को मेरे दुख सिर्फ

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वर्ण-पिरामिड

6 फरवरी 2016
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*जिंदगी*1.हैटेढीपहेलीजिंदगानीजो सुलझायेवही बना ज्ञानीशेष रहे अज्ञानी ==========*मधुर गान*2.हेरामअमृततेरा नाममधुर गानगाँऊ दिन रैनआये दिल को चैन===========*जीव*3.जोजीवजीवनजीता जाताजिंदादिली सेजरावस्था डरेजवान सदा रहे============*शीत लहर*4.लोआईठण्डकबेरहमशीत लहरढाती है कहरजिनके कच्चे घर=============*कम्

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~ शब्दों का नकारात्मक व सकारात्मक पहलू ~

6 फरवरी 2016
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शब्द ,वो है जो अगर सोच-समझकर ना बोले जाएँ तो बवाल मचा सकते हैं । शब्द वो हैं, जो किसी को तीखे तीर से भी गहरे घाव दे सकते हैं तो किसी दुखी हृदय के लिए मरहम भी बन सकते हैं । 'तोल-मोल के बोल ' और " ऐसी वाणी बोलिए ,जो मन का आपा खोय । औरन को शीतल करे,आपहूँ  शीतल होय ॥ " ये सब हमारे संत और ऋषि -मुनियों ने

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