भावों को शब्द देना मानो समुद्र को तालाब की संज्ञा देना,,, भाव बहुत ही गहरे होते हैं, शब्दों की पहुंच वहाँ तक नही हो पाती, शब्दों की अपनी सीमितता है. वो गहरे भावों को खुद में समेट पाने में असमर्थ होते हैं. जब भी हम अपने भावों को शब्दों में जाहिर करने की नाकाम सी कोशिश करते हैं तो चाहे कितने भी शब्द प्रयोग में ले लें फिर भी लगता है कुछ अधुरा सा है, जो कहना चाह रहे थे वो अभी भी पूरी तरह से कह नही पाये,,, वो अधुरा सा इसिलिये लगता है क्योंकि भाव सिर्फ और सिर्फ महसूस ही किये जा सकते हैं शब्दों मे उन्हें समझाया नही जा सकता, बस कहा जा सकता है,,, कहे जाने में भाव हमेशा अधुरे ही रहेंगे चाहे करोडों शब्दों का इस्तेमाल क्युँ ना कर लिया जाये. फिर भी शब्द ही हैं जो हमारे भावों को अन्य तक पहूँचाने का माध्यम है. ये बेशक भावों की गहराई तक ना पहुँच पायें पर हमारे ह्र्दय में उत्पन्न हुये भावों का आभास तो दे ही जाते हैं. इसिलिये शब्द भी उतने ही महत्वपुर्ण हैं जितने कि हमारे भाव. रचनायें हमारे उन भावों को अभिव्यक्ति ही तो है. हम अपनी कविता - कहानी में अपने भावों को ही तो शब्दों के माध्यम से पिरोते हैं, जैसे एक एक मोती को पिरोने के बाद ही एक माला बनती है ठीक वैसे ही एक एक भाव को शब्दों में ढालने पर कविता व कहानी बनती है.