*** दुख व खुशियाँ***
मेरी खुशियाँ सिर्फ मेरी नहीं होती, बिखरा देती हूँ उन्हें अपने इर्द गिर्द।फिर जो भी आता मेरे दायरे में,,, वो उसकी भी खुशियाँ हो जाती हैं |भीग जाता,,, हो जाता सराबोर वो भी, उस खुशी की महक से । वो भीनी भीनी खुश्बू खुशी की, कर देती मजबूर उसे भी खुश हो जाने को। खुश हो कर खुशियाँ लुटाने को मेरे दुख सिर्फ