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मायके की डोर...!!

10 नवम्बर 2021

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मायका होता स्नेह भरा,

हर बेटी को छोड़ कर भी जाना पड़ता,

ससुराल में हर रस्म-रिवाज,

मान -मर्यादा, धर्म-कर्त्तव्य को निभाना पड़ता

लेकिन बंधी रहती है मायके की डोर से,

उसी से शक्ति पा कर करती हर कार्य

जोश और पोर से,

सासुमां में मां ढूंढती, ननद देवर में भाई-बहन,

ससुरजी में पिता खोजती

देवरानी-जेठानी में निज सखियन,

अपने बच्चों में खुद का बचपन,

साजन में मिल जाते जब वो अरमान,

संजोया करती थी  जो मायके के आंगन,

मिल जाता सबकुछ फिर भी

जीवन भर बंधी रहती मायके की 

 मधुर यादों की डोर से....!!!

    ‌                    -सीमा गुप्ता

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रचनाएँ
राजस्थान सीमा गुप्ता अलवर की डायरी
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नारी सीमांजलि; नारी के प्रत्येक पड़ाव को अपने शब्द देकर काव्य रूप में लिखती हूं।
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<p>--पीहर आने के बाद✍️✍️<br> <br> कितने भी बड़े क्यों हो जाएं,<br> ससुराल से पीहर आने के बाद,<br> मन

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ससुराल की दहलीज पर  रखा जब मेरा पहला कदम तेज हो रही थी मेरी धडकन सासें चल रही थी सननसनन मस्त थे सब करने पूरी रस्म था नई नवेली बहु काआगमन पर मेरे मन में चल रहा जंगम अच्छे बुरे विचारो का  संगम स

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तीन दिन तक अछूत की तरह रहना कही नही जाना,अलग धरती का बिछौना मिलता रहने को घर का अंदर का कोना अलग खाना किसी वस्तु को ना छूना महावारी के  पुराने समय वो दिन सब कहते गंदगी है अभी किसी को अपना मुंह न

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