मेरा गाँव मोहनपुर, कालीन नगरी भदोही जनपद का एक छोटा सा गाँव है, क्षेत्रफल की दृष्टी से यह बड़ा तो नहीं है, लेकिन जनसँख्या की दृष्टी से बड़ा है | लेकिन अब नहीं रहा क्योकी आधी से ज्यादा आबादी तो रोजगार की आशा में मुंबई जैसे महानगरो की और पलायन कर चुका है | गाँव के बीचोबीच ही सारी आबादी बसी हुई है और चारो तरफ खेत-खलिहान ऐसे लगते है मानो खुले आसमान के बिच सूरज अपनी छठा बिखेर रहा हो | बाग़-बगीचो के नाम पर कई है, जहाँ अब भी गर्मी के मौसम में आम के पेड़ के निचे कई बच्चे जमा हो जाते है, और दोपहर तो वही ख़त्म होती है | हमारा गाँव भी भारत की ही तरह आर्थीक विषमता का शिकार है, कई धन-धान्य से संपन्न है तो कई रोज कुआँ खोदे तभी पानी मिलता है | सभी आपस में मिलजुलकर रहते है, हमेशा प्रसन्न होते है, दुखी भी होते है तो एक नहीं कई लोग साथ देने को खड़े मिलते है, कभी किसी के यहाँ कुछ भी कार्यक्रम का आयोजन हुआ तो गाँव के बुजुर्ग वहां कार्यक्रम का संचालन बिना सकोच के इस भाव से करते है की इस कार्यक्रम की सारी जिम्मेदारी उन्ही के कंधो पर है| इतना ही नहीं तख़्त, कंडाल (पानी भरने वाले बर्तन), बर्तन और अन्य सामान देकर एक दुसरे की मदद करते है | किसी के घर शादी के समय अगर मेहमान ज्यादा हो गए तो वे पड़ोसी के घर चले जाते है, और उस मेहमान का सत्कार उसी तरह होता है, जैसे अपने मेहमान का सत्कार करते है | बस, संक्षेप में इतना ही कह सकता हूँ, कि मेरा गाँव अनेकता में एकता का जीता जागता उदाहरण है |
फिर मिलूंगा कुछ बीती बातो के साथ, जिन्हें याद करना एक सुखद अनुभव है |
धन्यवाद |