कभी सज़ा कराती थी रातें मेरी बस्ती में | खुदा को रास न आई मेरी रातें | खुदा ने उजाड़ दिया मेरी बस्ती को। अब नहीं सजती रातें मेरी बस्ती में |
मैं रुका हुआ रुक सी गई मंज़िल |अब कहा किसी की तलास मुझे |मैं खुद को तलास लू अब |यही तलास अब मंज़िल मेरी |
अब सिकवे सिकायत नहीं अपने आप से |.कर लू एक मुलाकात सिर्फ अपने आप से |मेरी खामोसी की सिर्फ एक यही वजह रही | अब सिकायत नही आप से यही वजह रही |