बेसिक जानकारी
धू अल-क़ादा,जुल-हिज्जा,रजब और मुहर्रम। इस्लामिक कैलेंडर में ये चार महीने बहुत खा़स माने जाते हैं। इस्लामिक नए साल की शुरुआत मुहर्र के महीने से होती है।
मुसलमानों के लिए मोहर्रम का महीना बहुत ख़ास होता है... मोहर्रम की 10 तारीख को यौमे आशूरा कहा जाता है ....मोहर्रम के महीने में हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे हज़रत इमाम हुसैन कर्बला की जंग में शहीद हुए थे इसीलिए आशूरा के दिन मुस्लिम लोगों में से अधिकतर मुस्लिम मातम मनाते हैं और आज के दिन ही ताजिया और जुलूस भी निकाले जाते हैं ।
जिसमें लोग इमाम हुसैन और उनके साथ शहीद होने वाले लोगों की याद में मातम करते हैं और मसीहा पढ़ते हैं ..... मरसिया का अर्थ होता है दुख भरे गीत इसीलिए कुछ लोग मोहर्रम के महीने को इस तरह बयान करते हैं जैसा के नीचे लिखा है 👉
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार आज से 1400 साल पहले कर्बला की जंग में मोहम्मद साहब के नवासे और हज़रत इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे यह लड़ाई इराक के कर्बला में हुई थी ....।
इस लड़ाई में इमाम हुसैन और उनके परिवार के हर एक इंसान को चाहे वह छोटा है या बड़ा यहां तक कि मासूम बच्चों को भी भूखा प्यासा इस लड़ाई में बहुत बेदर्दी से शहीद कर दिया गया था।
इसीलिए मोहर्रम में जगह जगह सबीले लगाई जाती हैं जिसमें राह चलते हर व्यक्ति को शरबत पानी और खाने पीने वस्तुओं को मुफ़्त बांटने का इंतज़ाम किया जाता है।
कर्बला की लड़ाई में हज़रत इमाम हुसैन ने इंसानियत को बचाने के लिए अपने आप को कुर्बान कर दिया था..... उन्होंने जुल्म के सामने झुकने से अच्छा शहीद होना समझा और इंसानियत को बचाया!
इसीलिए मोहर्रम का महीना इंसानियत का महीना भी कहा जाता है संक्षेप में हम कह सकते हैं हज़रत इमाम हुसैन की कुर्बानी और शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। और उनकी शहादत की याद में ही ताजिया और जुलूस निकाले जाते हैं।
इस साल मोहर्रम का महीना 20 जुलाई से शुरू हुआ था और 20 जुलाई को ही इस्लामिक नए साल की शुरुआत हुई थी।
मोहर्रम के दिन हजरत इमाम हुसैन और उनके परिवार और साथियों के शहीद हो जाने के कारण मोहर्रम के महीने में मुस्लिम धर्म के लोग खुशियां नहीं मनाते बल्कि मातम और जुलूस निकालते हैं और मरसिया पढ़ते हैं
मरसिया का एक उदाहरण निम्नलिखित है...
रो रो कहती है थी ज़हरा की जाई
घर चलो करबला वाले भाई
तुमने जंगल में बस्ती बसाई
घर चलो कर्बला वाले भाई
(नोट उपरोक्त नौहे बिस्मिल्लाह खां शहनाई पर बजाया करते थे।)
इस लेख में केवल बेसिक जानकारी देने का प्रयास किया गया है ।
सय्यदा खा़तून ✍️