खुश हो रही हूं आज मैं इस ख़्याल से
चंद्रयान पहुंच गया मेरे भाई के द्वार पे
अब कहूंगी बच्चों से निकलो जब टूर पे
मिलो तुम मामा से नहीं हैं वो अब दूर के
कहना राखी बांधने मै अब आऊंगी वहीं
दिल चाहता है देखूं मैं भी तुम्हें करीब से।
बेचैन मेरा दिल ये सोच कर हो गया है
खाने को नहीं है कुछ भी तुम्हारे पास मे
गढ्ढे तुम्हारे गालों पर जो मुझे दीख रहें हैं
भर दूंगी उन सभी को मैं अपने प्यार से
आना जाना तो अब लगा रहेगा मेरे भाई
चंद्रयान थ्री ने दिल मेरे उम्मीद ये जगाई
उम्मीद ये जगाई......
मौलिक रचना
सय्यदा खातून ✍🏼