भाग 6 में आप लोगों ने देखा कि किस तरह सुनील अपने साथ हो रही इस ख़ुशनुमा बातों को लेकर हैरान था इसलिये सारा माजरा समझने के लिये वो वापस अपने पुराने गांव मे अपने परिवार के साथ लौट जाता है और वहां पहुंच कर जब उसने वहां का नज़ारा देखा तो गर्व से उसका कद आसमान को चीरने लगा क्योंकि वो जैसे ही पुराने गांव में पहुंचा तो उसने देखा कि गांव के बीचो बीच एक विशाल भूभाग पर एक भव्य विद्यालय का निर्माण जोरों शोरो से चल रहा है वो कुछ समझ पाता इससे पहले ही उसे प्रवेश द्वार पर बना हुआ सीमेंट का एक छोटा सा बोर्ड दिखाई देता है जिसके मध्य में काले रंग की ग्रेनाइट की प्लेट पर स्वर्णिम अक्षरों मे लिखा हुआ था कि [बच्चों के लिए उच्च श्रेणी की मुफ्त शिक्षा हेतु श्री सुनील जी द्वारा सप्रेम भेंट स्वरूप लोकार्पित] जिसे देखकर सुनील का परिवार भी खुशी से फूला नहीं समाता और इसके बाद सुनील अपने पुराने घर पर पहुंच जाता है अपने परिवार को घर पर छोड़कर वो गांव वालों से मिलने निकल जाता है फिर जब वो गांव की चौपाल पर पहुंचता है तो उसे देख चौपाल पर बैठे हुए सभी लोग उसके सम्मान में खड़े होकर उसे आदर के साथ वहां बिठाते है और फिर सुनील उनसे पूछता है कि ये सब क्या हो रहा है ये विद्यालय का निर्माण कौन करवा रहा है फिर चौपाल पर बैठा एक बुजुर्ग सुनील को सारी बातें बताता है कि उसका पुत्र कुछ दिनों पहले यहां आया था और आपके संघर्ष पर व्याकुल होकर रो रहा था फिर उसने उसी दिन हम लोगों के सामने शपथ ली की जो संघर्ष आपने किया वो गांव के किसी और पिता को नहीं करना पड़ेगा और फिर यहां से चला गया l अब जाकर सुनील को पता चला कि ये सब उसके पुत्र के द्वारा किया जा रहा था और फिर वो ये सब बातेँ अपने परिवार को बताने के लिए चल दिया पर जैसे ही वो घर पहुंचा तो उसने देखा कि उसका पुत्र परिवार के साथ भोजन कर रहा है उसने अपने पुत्र को सीने से लगा लिया और उसकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे ये वो पल था जिसे हम सुनील की मंज़िल मान सकते है फिर पिता और पुत्र काफी देर तक बैठ कर चर्चा करते है l पुत्र अपने नए जॉब के बारे मे पिता को बताता है जिसे सुन सुनील बहुत खुश हो जाता है और उसे ढेर सारा आशीर्वाद देता है l अगले दिन सुबह पुत्र वापस लौट जाता है और गोदाम का काम देखने के लिए एक मैनेजर को नियुक्त कर जाता हैl सुनील भी अब निश्चिंत होकर गोदाम और विद्यालय निर्माण कार्य मे व्यस्त हो जाता है और फिर एक दिन वो अपने छोटे बेटे से मिलने दिल्ली जाता है और वहाँ पहुंचकर जब वो अपने पुत्र से मिलता है तो उसका पुत्र भी बहुत खुश हो जाता है और विद्यालय निर्माण के लिए अपने पिता को बधाईयाँ देता है फिर कुछ देर बैठकर बातें करने के बाद वो सुनील को स्टेशन तक छोड़ देता है और सुनील वापस अपने गांव लौट आता हैl
और फिर देखते ही देखते दो साल बीत जाते है और विद्यालय भी बनकर तैयार हो जाता है तो वहीं दूसरी ओर उसका छोटा बेटा भी दिल्ली एम्स से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर कुछ दिनों तक वहां प्रैक्टिस कर झारखंड मे ही अपना एक अस्पताल खोल लेता है जो देखते ही देखते पूरे झारखंड में मशहूर हो जाता है l
ये कथा उन सभी के मुंह पर लगा एक करारा तमाचा है जो किसी संघर्षरत गरीब का कुछ इस कदर मज़ाक बनाते है कि यदि वो ग़रीब सुनील जैसे हौंसले न रखे तो शायद निराशा और गुमनामी के दलदल मे उतर कर
जीवन से हार मान कर खुद को मुकद्दर के भरोसे छोड़कर ही संतुष्ट जाते हैं l
मुमकिन कर दिया नामुमकिन को
मुश्किलों को भी सरल कर गया
मुकद्दर उसे कहां बदल पाया वो तो
जिद से मुकद्दर को ही बदल गया