भाग 3 में आप लोगों ने देखा कि किस तरह सुनील पैसों की व्यवस्था में खुद को पूरी तरह भूल चुका था सुनील को तकरीबन पांच लाख रुपयों की जरूरत थी ताकि वो अपने पुत्र की फीस और अन्य जरूरतें पूरी कर कानपुर में उसके रहने के सभी प्रबंध कर सके और अपने छोटे पुत्र जो कि हाल ही में हाई स्कूल की परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ था उसका भी दाखिला NEET की तैयारी के लिए एक अच्छे से कोचिंग संस्थान में करवा सके l
अगले ही दिन वो सुबह अपनी पत्नी से इस बारे मे बात करता है और फिर उसकी सलाह पर एक साहूकार के पास जाकर पांच लाख रुपये ब्याज पर मांगता है जिस पर साहूकार उसकी हालत देखकर पैसे देने से इंकार कर देता है फिर सुनील निराश मन से घर पर आकर अपनी असमर्थता पर इतना चिन्तित हो जाता है कि उसे खाने तक का होश नहीं रहता और गर्मी के मौसम में भरी दोपहर में बिना कुछ खाए पीए पैसों की जुगाड़ में निकल पड़ता है अपने हर एक सगे संबंधियों और रिश्तेदारों के सामने हाथ फैलाकर भी जब उसे निराशा ही हाथ लगती है तो एक पल के लिए जीवन से उसका मोह ही खत्म हो जाता है पर उसके सपने उसे जिन्दा रहने पर मजबूर कर रहे थे इसलिए परिस्थितियों का मारा बेचारा मौत के घूंट पीकर भी जिन्दा रहा l
मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है
हर एक पल एक नया इम्तिहान होता है
जो भाग गया मैदान से उसे क्या मिला
जो लड़ता है उसके कदमों में जहां होता है
अंत मे जब उसे कोई राह नजर न आयी तो उसने अपना घर बेचने का निर्णय लिया और अपने पिता से इस बारे मे जिक्र किया तो अपने पुत्र की हालत पर वो बुढ़ा बाप अपने आंसुओ को न रोक पाया और उसके निर्णय से सहमत होकर उसने घर के कागजात अपने पुत्र को दे दिए जिसे लेकर पुत्र दुबारा से साहूकार के पास गया और चार लाख रुपयों में अपने घर का सौदा कर दिया अब इस नई विपत्ति का सामना करने के लिए सुनील का पूरा परिवार राम भरोसे निकल पड़ा किन्तु जाना कहां था ये किसी को नहीं पता l
राह न बदली, पर सफर नया था l
दुख दर्द बना, हमसफर नया था ll
जिद के आगे झुका नहीं, वो l
भले टूटकर, बिखर गया था ll