भाग-2 में आप लोगों ने देखा कि गांव वालों के मज़ाक से सुनील की मानसिक दशा खराब होती जा रही पर सुनील भी एक रबर की भांति अडिग था कोई कितना भी तोड़ मरोड़ ले पर अंत मे वह अपना आकार फिर से ले ही लेता है l
कूद पड़ा समुंदर में वो
तैरना भी नहीं जानता था
उफान पर था समुंदर भी
पर उसे नही पहचानता था
पागलपन में तूफ़ान से भिड़ा
बंदा वो अनजान था शायद
मंज़िल मिली जुनून से उसको
उसके साथ भगवान था शायद
अब परिस्थितियां कुछ यूं थी कि दिन भर की मेहनत से थककर रात को कोयले की खदान में काम करने वाले सुनील को अचानक ही दिल का दौरा पड़ने से से वो कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहा किन्तु अपने बच्चों को इस बात की भनक तक नहीं लगने दी इस दौरान सुनील की पत्नी ने चाय की दुकान भी संभाली और अपना काम भी करती रही तो वही दूसरी ओर सुनील की बुढ़ी मां अस्पताल में सुनील की देखरेख करती थी l
पूरे बीस दिनों बाद सुनील जब अस्पताल से वापस अपने घर आया तो डॉक्टर की दी हुई सलाह को भूलकर वो रात को फिर कोयले की खदान में काम करने चला गया इस बात से सुनील के माता पिता और उसकी पत्नी भी नाराज थे परन्तु वो लोग भी सुनील की जिद से परिचित थे इसलिए कुछ न कर सके l
कुछ समय बाद सुनील के बड़े बेटे ने इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा भी दी और नतीजे के इंतजार में कुछ दिनों के लिए अपने गांव आने के लिए तैयार था किंतु सुनील के पिताजी ने उसे मना कर दिया क्योंकि वो जानते थे कि उनकी परिस्थितियों से परेशान होकर कहीं उनका पुत्र हताश ना हो जाये इसलिए वो खुद ही जाकर अपने बच्चों से मिल आए और उन्हें जरूरत के सभी सामान भी दे आए l
फिर कुछ दिनों के बाद नतीजे घोषित हुए और सुनील के बड़े पुत्र का चयन आईआईटी कानपुर में हो गया जिससे खुश होकर सुनील अपने पुत्र से मिलने के लिए अपनी पत्नी के साथ शहर गया l
पुत्र के साथ आईआईटी कानपुर में जाकर सारी जानकारियां प्राप्त कर वो वापस लौट रहा था किंतु उसके मन में फीस एवं अन्य खर्च को लेकर चल रहे विचारों को उसने तनिक भी प्रकट नहीं होने दिया और पुत्र को वापस शहर छोड़कर अपने गांव आ गया जिसके बाद तो वो पैसों की व्यवस्था में इतना उलझ गया कि तीन दिनों तक ठीक से खाना भी नहीं खाया l
तुम्हारे हर अरमान की खातिर
जो झेल गया हर दुख-संताप को
खुद को भूला जो तुम्हारी खातिर
कभी न भूलना उस बाप को