इस कथा के सबसे मार्मिक दृश्य भाग 4 में आपने देखा कि किस तरह सुनील अपने परिवार के साथ घर छोड़कर निकल पड़ता है और इस गांव में उसका कोई भी दूसरा ठिकाना नहीं था और अपने आत्मसम्मान के कारण किसी भी रिश्तेदारों के घर जाना भी उसे मंजूर न था इसलिये वो अपने परिवार को लेकर दूसरे गांव में एक भले मनुष्य के यहां किराये पर कमरा लेकर रहने लगा फिर अपने परिवार के रहने का सारा प्रबंध कर वो अपने पुत्र को लेकर कानपुर चला गया और उसका एडमिशन आईआईटी कानपुर में करवा कर उसके सभी जरूरी इंतजामात कर दिए और फिर लौटकर अपने छोटे पुत्र को भी शहर की एक मशहूर कोचिंग संस्थान में NEET की तैयारी के लिए दाखिला करवा दिया l
किन्तु असली जंग तो अब शुरू हुई जब उसके दोनों पुत्रों के पढ़ाई के खर्च को वहन करने के लिए उसके पास बिलकुल भी रुपये न बचे और न रुपयों के इंतजाम के लिए कोई साधन इसलिए एक नए गांव में काम की तलाश में वो दर दर भटकने लगा फिर उसे एक गोदाम में हम्माल का काम मिल गया जहां वो पूरा दिन हम्माली करता और फिर रात को उसी गोदाम की पहरेदारी करता था जिससे उसके परिवार का गुजर बसर चलने लगा l
दिन बीतते गये और फिर एक ओर जहां सुनील का बड़ा पुत्र अपनी मेहनत और लगन से आईआईटी कानपुर मैं थर्ड ईयर में आ गया तो वहीं दूसरी ओर उसके छोटे पुत्र का भी NEET के जरिए AIMS दिल्ली मे चयन हो गया जिससे सुनील की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि एम्स दिल्ली एक प्रतिष्ठित संस्थान तो था ही और उसकी फीस भी ज्यादा न थी और फिर सुनील उसके छोटे पुत्र के साथ दिल्ली जाकर उसका एडमिशन दिल्ली एम्स में एमबीबीएस कोर्स में करवाकर उसका सारा प्रबंध कर वापस अपने गांव लौट आया हैरत की बात थी कि सुनील के साथ इतना सब कुछ हो गया पर उसके दोनों पुत्रों को उसने कुछ भी न बताया था l
परिस्थितियों का मारा सुनील भी शारीरिक रूप से इतना कमजोर हो गया था कि वक़्त के पहले ही बुढ़ा हो चला था पर जिम्मेदारियों के कारण वो मानसिक रूप से अपनी जिद पर हमेशा अटल रहा l
चट्टानों सी हिम्मत, और जज्बातों
का दिल में, तूफ़ान लिये चलता है l
पूरा करने की जिद, में एक पिता
बच्चों के अरमान लिए, चलता है ll
सुनील के ऊपर मंडरा रहे संकटों के बादल अब छटने लगे थे और खुशियो के पल तेजी से उसकी ओर बढ़े चले आ रहे थे और देखते ही देखते वो पल भी आ गया जिसके लिए सुनील ने वर्षों तपस्या की थी उसके बड़े पुत्र का आईआईटी कानपुर से एक एमएनसी कंपनी में अठारह करोड़ रुपये के पैकेज पर प्लेसमेंट हो गया और अपने पिता को यह खुश खबरी देने की लिए सुनील का बड़ा पुत्र अपने गांव लौटा तो उसने देखा कि उसके घर पर कोई और रह रहा था जिस पर सुनील ने पूछताछ की तो उसे पता लगा कि वो घर सुनील ने अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए साहूकार को बेच दिया है और खुद अपने परिवार के साथ गांव छोड़कर चले गए और पास ही के गांव में किराये पर रहते हुए गोदाम में हम्माली करते है ये वृत्तांत सुनकर पुत्र अपने पिता के संघर्षों की पराकाष्ठा के अनुमान में बेकाबू होकर अपनी आंखों से झरने के समान बह रहे आंसुओ को रोक नहीं पा रहा था और उसे बार बार पिता का एक ही झूठ याद आ रहा था
कहते थे की साहिब हूं
में हूं कोई हम्माल नहीं
धन दौलत भरपूर है बेटा
बाप तेरा कंगाल नहीं
इतना सब कुछ सह कर भी
था दिल मे कोई मलाल नहीं
सब कुछ खोकर भी क्यों
कभी बताया अपना हाल नहीं