पापा देखो वो ड्रेस, मुझे वहीं ड्रेस चाहिए, चलो पापा दिलवाओ ना, नन्ही पीहू अपने पापा से जिद करते हुए बोली। बेटा वो ड्रेस हम लोगों के लिए नहीं है, पापा ने समझाते हुए कहा। पापा मुझे वहीं ड्रेस चाहिए, चाहिए तो चाहिए, पीहू ने लगातार जिद की तो उसके पापा उसका हाथ पकड़ कर उस दुकान पर ले गए। ये ड्रेस कितने की है, उन्होंने दुकान वाले से उस ड्रेस की तरफ इशारा करके पूछा। दुकानवाले ने एक बार उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा। 3000 रुपए, उस दुकानदार ने कहा। उसके पापा ने अपना पर्स खोल कर देखा तो उसमें सिर्फ 400 रुपए और कुछ रेज़गारी के अलावा कुछ नहीं रखा था। शायद मैं अपने पैसे घर ही भूल आया हूं, पीहू के पापा ने दुकानवाले के सामने बहाना किया और पीहू का हाथ पकड़ कर दुकान से बाहर आ गए। पीहू अभी भी उनकी तरफ उत्सुकता से देख रही थी। बाहर आकर उन्होंने पीहू को गोद में उठा लिया। आपको वो ड्रेस चाहिए ना? पापा ने पूछा। हां पापा मुझे वो ड्रेस चाहिए, पीहू ने कहा। बेटा मैंने आपको वो राजकुमार वाली कहानी सुनाई थी ना, उसके पापा ने पूछा। हां पापा मुझे याद है वो जो घोड़े पर आता था, पीहू ने याद करते हुए बताया। हां तो वहीं राजकुमार आपके लिए एक दिन ये ड्रेस लाएगा, तो अब बताओ कि आपको ये ड्रेस अब चाहिए या उस राजकुमार से चाहिए, पापा ने पूछा। मेरे राजकुमार से, पीहू ने तुरंत जवाब दिया। मुझे तो राजकुमार से ड्रेस मिलेगी, पीहू ने ताली बजाते हुए कहा। ठीक है तो आओ अब घर चलते हैं, उसके पापा ने कहा तो वो खुशी खुशी उनके साथ घर चल दी। उसके पापा कुछ सोचते हुए जा रहे थे और उनकी आंखे आंसुओं से भरी हुई थी। वो लोग घर पर पहुंचे ही थे कि कुछ लोग उनके घर के पास खड़े हुए थे। मिस्टर संजय, हम आपका ही इंतजार कर रहे थे, उन्होंने देखते ही पीहू के पापा से कहा। पीहू जाओ खेल लो, पीहू के पापा ने कहा। जी कहिए, पीहू के जाने के बाद, पीहू के पापा ने उन लोगों से पूछा। देखिए मिस्टर संजय हमें आपकी वाइफ के बारे में जान कर बहुत अफसोस हुआ लेकिन हम लोग भी मजबूर हैं, आप पर बहुत ज्यादा क़र्ज़ हो चुका है, हम पर ऊपर से बहुत ज्यादा दबाव है, या तो आप सब सैटल करो, नहीं तो हमें मजबूरन आपका घर नीलाम करना होगा, आपके पास बस कल तक का समय है, उन लोगों ने कहा। लेकिन इतनी जल्दी इतने सारे पैसे का मैं कैसे इंतजाम करूंगा? पीहू के पापा ने परेशान हो कर पूछा। देखिए वो सब हम नहीं जानते, कल का मतलब कल, ये कह कर वो लोग वहां से निकल गए। पीहू के पापा परेशान हो कर पीहू की तरफ देखने लगे जो अभी भी खेलने में लगी हुई थी। उन्होंने सोच लिया था कि उन्हें क्या करना है।
शाम होते ही पीहू के पापा उसे अनाथ आश्रम के पास ले गए। वहां पहुंच कर उन्होंने पीहू को अपने गले लगा लिया और रोने लगे। पापा आप रो क्यों रहें हैं? पीहू ने उनको देखते हुए पूछा। बेटा, पापा आपसे बहुत प्यार करते हैं, जैसे आपकी मम्मी आपको बहुत प्यार करती है ना वैसे ही पापा भी आपको बहुत प्यार करते है, उन्होंने रोते हुए पीहू से कहा। बेटा मुझसे प्रॉमिस करो कि आप यहां से कहीं नहीं जाओगी, पापा ने पीहू से कहा। पापा आप कहां जा रहें हैं, पीहू ने मासूमियत से पूछा। बेटा पापा आपकी मम्मी को लेने जा रहे है, तो आप यहीं रहना, ठीक है?, पापा ने पूछा। ठीक है, पीहू ने मुस्कुरा कर कहा। उसके पापा वहां से जाने लगे, जाते हुए उन्होंने पीहू को एक बार फिर से देखा फिर तेज़ी से एक सड़क पर मुड़ कर चले गए।
पीहू उनका इंतजार करते हुए वहीं बैठ गई। बेटा, कौन हो तुम और यहां क्यों बैठी हो? अंदर से एक महिला ने आकर पीहू से पूछा। मेरे पापा मेरी मम्मी को लेने गए हैं, उन्होंने बोला है कि जब तक वो वापस नहीं आ जाते तब तक मैं यहीं रहूं, पीहू ने मासूमियत भरा जवाब दिया। बेटा जब तक आपके पापा नहीं आते तब तक अंदर चलो, तुम्हे भूख भी लगी होगी ना, उस महिला ने पूछा तो पीहू ने हल्के से गर्दन हिलाई और फिर उनका हाथ पकड़ कर अंदर चली गई।
अगली सुबह अख़बारों में सुर्खियां छाई हुई थी "युवा व्यापारी ने भारी कर्ज के चलते फांसी लगाई"।
उस महिला सुमन ने पीहू को वहीं अपने पास रख लिया। पीहू रोज़ सुबह ही अपने पापा के इंतज़ार में दरवाज़े के बाहर बैठ जाती लेकिन उसके पापा को नहीं आना था तो वो नहीं आए।
दिन ऐसे ही गुजरने लगे। पीहू की पढ़ाई लिखाई उस अनाथ आश्रम में ही होने लगी और देखते ही देखते 17 साल कैसे गुजर गए उसे पता ही नहीं चला। अब उसकी दुनिया वहीं अनाथ आश्रम थी। वहां के बच्चों की देखभाल करना, उन्हें पढ़ाना सब वहीं देखती थी। बच्चे भी सारे दिन पीहू दीदी ही करते रहते थे। कभी कभी पीहू को अपने पापा के बारे में ख्याल आ जाता था।
पीहू, देखो कल जो समारोह है, उसकी सारी तैयारियां तुम्हे ही देखनी है, हर साल की तरह इस साल भी इस अनाथ आश्रम के फाउंडर अपने परिवार के साथ आएंगे, तो ध्यान रखना कि कोई भी कमी नहीं रहे, सुमन ने आ कर कहा तो पीहू ने सर हिला कर हामी भरी।
उस अनाथ आश्रम का सारा खर्च शहर के एक जाने माने रईस दिग्विजय राठौर उठाते थे। दिग्विजय बरामदे में टहल रहे थे। ये लड़का कितना लापरवाह है, इतना समय हो गया है लेकिन अभी तक तैयार हो कर नीचे नहीं आया। क्या इसे पता नहीं है कि आज इसे भी अनाथ आश्रम चलना है, उन्हें गुस्सा आ रहा था। जाओ देखो शुभम अभी तक उठा क्यों नहीं, उन्होंने घर के एक नौकर को देखने के लिए कहा। तभी शुभम की मम्मी भी वहां आ गई। तुम्हारे लाड प्यार ने उसे बिल्कुल नकारा बना दिया है, मेरे बाद उसे ही सब कुछ संभालना है, वो ऐसे ही लापरवाही करेगा तो काम कैसे चलेगा, शुभम की मम्मी को देखते हुए उन्होंने कहा। मैं एक बार जा कर देखती हूं, शुभम की मम्मी ने कहा और वहां से चली गईं। शुभम अपने बिस्तर पर पड़ा हुआ सो रहा था। शुभम, उसकी मम्मी ने तेज़ आवाज़ में कहा। मम्मी प्लीज मुझे अभी सोने दो, शुभम ने ऐसे ही बिस्तर पर पड़े हुए कहा। तुझे पता नहीं कि आज हम सबको अनाथ आश्रम जाना है, मम्मी ने कहा। मम्मी मैंने कल भी बोला था कि मुझे इन जगहों पर जाने में कोई भी इंटरेस्ट नहीं है, फिर भी आप और पापा वहां जाने के लिए मेरे पीछे पड़े हैं, शुभम ने झुंझला कर कहा। शुभम तेरे पापा तेरा नीचे इंतज़ार कर रहे है, बस आज आज के लिए चल हमारे साथ, फिर तुझे जाने के लिए नहीं कहूंगी, मम्मी ने कहा तो शुभम मुंह बनाता हुआ उठ गया।
वो सब लोग जब अनाथ आश्रम पहुंचे तो सभी लोग वहां बेसब्री से उन लोगों का इंतज़ार कर रहे थे। आइए हमारे साथ, कार्यक्रम बस शुरू ही होने वाला है, सुमन ने कहा। शुभम का वैसे भी इन चीजों में इंटरेस्ट नहीं था इसलिए वो थोड़ा इधर उधर टहलने लगा। तभी उसकी नजर एक लड़की पर पड़ी जो अंदर की डेकोरेशन में व्यस्त थी। उसे देख कर शुभम के कदम वहीं ठिठक गए। शुभम उधर की तरफ ही चला गया। वो लड़की पीहू ही थी। वो मेज़ पर खड़ी हुई झालर लगा रही थी। उसने शुभम को एक नजर देखा। तुम सुनो, पीहू ने शुभम से कहा। बोलो, शुभम ने कहा। तुम्हारी लंबाई बहुत अच्छी है तुम मेज़ पर चढ़ कर इस झालर को थोड़ा ऊपर करके लगाओ, पीहू ने शुभम से कहा। मैं लगाऊं इस झालर को? शुभम ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा। हां तुमसे ही कहा है, पीहू ने कहा तो शुभम मुंह बनाता हुए चुपचाप मेज़ पर चढ़ कर झालर को ठीक करने लगा। थोड़ा जल्दी करो, सब आने वाले है, पीहू ने कहा तो शुभम उसे गुस्से में देखने लगा। झालर ठीक होने के बाद, शुभम नीचे उतरा। तुम जानती हो कि मैं कौन हूं?, शुभम ने पूछा। देखो तुम कौन हो इस बात में मुझे बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं है फिलहाल जल्दी से ये सब सामान हटाने में मेरी मदद करो, पीहू ने कहा और कुछ सामान उसके हाथों में रख दिया। इसे वहां रख दो, पीहू ने कहा। थोड़ी देर बाद ही सब लोग वहां आ गए। पीहू, कैसी हो बेटी? दिग्विजय ने वहां आ कर पीहू से पूछा। मैं ठीक हूं सर, आप कैसे है? पीहू ने पूछा। तभी पीछे से शुभम भी आ गया। लो, ये बाबूजी यहां है और हम इन्हें सब जगह ढूंढ रहे थे, शुभम को देख कर दिग्विजय ने कहा। पीहू इससे मिलो ये शुभम है, मेरा बेटा, दिग्विजय ने जैसे ही ये कहा तो पीहू का चेहरा शर्म की वजह से लाल हो गया। चलिए कार्यक्रम की शुरुवात करते है, सुमन ने कहा तो सब बैठने लगे। अब तो पता चल गया कि मैं कौन हूं, शुभम ने मौका देख कर पीहू के पास आ कर कहा। आई एम रिएली सॉरी शुभम सर, मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि ये आप हो, पीहू ने शर्मिंदा होते हुए कहा। तुम मुझे सिर्फ शुभम कह सकती हो, शुभम ने कहा तभी पीहू को सुमन ने बुला लिया तो वो तुरंत वहां से खिसक गई।
अगली सुबह शुभम सुबह ही उठ कर तैयार हो गया। गुड मॉर्निंग मम्मी पापा उसने कमरे से निकल कर कहा तो दोनों उसे चौंक कर देखने लगे। तुम्हें आज क्या हुआ है?, आज इतना जल्दी कैसे उठ गए, उसके पापा ने पूछा। बस कुछ नहीं पापा, मैं अनाथ आश्रम जा रहा हूं, मुझे लगता है कि मुझे अब कुछ समय उन बच्चों के साथ भी बिताना चाहिए, शुभम ने कहा तो उसके पापा ने उसे शक की नज़रों से देखा। देखा मैंने कहा था ना कि धीरे धीरे हमारा बेटा शुभम भी अपनी जिम्मेदारी समझने लगेगा, उसकी मम्मी ने उसके पापा से कहा तो उन्होंने बस हां में सर हिलाया।
शुभम जब अनाथ आश्रम पहुंचा तो पीहू वहीं बच्चों के साथ थी। हाय, कैसी हो? शुभम ने पीहू से कहा तो पीहू शुभम को देख कर चौंक पड़ी। आप यहां, इस वक्त? पीहू के मुंह से निकल गया। क्यों? मैं यहां नहीं आ सकता क्या? शुभम ने पूछा। नहीं नहीं ये सब तो आपका ही है, आप जब चाहें तब यहां आ सकते हैं, पीहू ने घबराते हुए कहा। ये आप मुझे देख कर इतना क्यों घबरा रही है? शुभम ने उसे गौर से देखते हुए कहा। नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है, पीहू ने इधर उधर देखते हुए कहा। मुझे अभी बच्चों की क्लास लेनी है, मैं आपसे बाद में मिलती हूं, ये कह कर पीहू वहां से तुरंत निकल गई। शुभम उसे ऐसे ही मुस्कुरा कर देखता रहा और फिर उस अनाथ आश्रम से चला गया।
अगले दिन शुभम फिर से अनाथ आश्रम पहुंच गया। पीहू, शुभम ने पहुंचते ही पीहू को आवाज़ दी। आप? पीहू ने शुभम को देखते ही कहा। हां मैं, शुभम ने कहा। अगर आप बुरा ना माने तो हम थोड़ी देर वहां बैठ सकते हैं? शुभम ने पूछा तो पीहू उसके साथ कुछ देर के लिए बैठ गई। तो आपको बच्चे अच्छे लगते हैं, शुभम ने पूछा। हां ऐसा ही समझ लो, पीहू ने कहा। तो तुम कितने बजे यहां आ जाती हो? शुभम ने पूछा। मैं तो यहीं रहती हूं, पीहू ने कहा। तुम्हारा कोई घर भी तो होगा? शुभम ने पूछा तो पीहू के चेहरे पर उदासी आ गई। मेरा बस यहीं परिवार है और यहीं मेरा घर है, पीहू ने कहा। ओह मुझे माफ करना, शुभम ने कहा। कोई बात नहीं, पीहू ने कहा।
अगर तुम चाहो तो मैं इन बच्चों को पेंटिग सीखा सकता हूं, शुभम ने कहा। आपको आती है पेंटिग? पीहू ने पूछा। हां, शुभम ने मुस्कुराते हुए कहा। ये तो बहुत अच्छी बात है, पीहू ने कहा। अगले दिन से शुभम भी उन बच्चों को पेंटिग सिखाने लगा। आपकी ड्रॉइंग बहुत अच्छी है, पीहू ने एक दिन शुभम की पेंटिग देखते हुए कहा। तुम चाहो तो मैं तुम्हारी भी तस्वीर बना सकता हूं, शुभम ने पीहू की तरफ देखते हुए कहा। अच्छा, तब तो मैं जरूर देखना चाहूंगी, पीहू ने मुस्कुराते हुए कहा। कल अगर तुम्हारे पास कुछ समय हो तो क्या हम बाहर चल सकते हैं? शुभम ने पूछा। मगर…..पीहू ने कुछ कहना चाहा तो शुभम ने उसे रोक दिया। प्लीज…..शुभम ने कहा। ठीक है लेकिन थोड़ी देर के लिए, पीहू ने कुछ रुक कर कहा।
अगले दिन शाम को शुभम पीहू को लेने आ गया। पीहू उसका इन्तज़ार ही कर रही थी। शुभम के आते ही वो उसके साथ गाड़ी में आ गई। तो हम कहां जा रहे है?, पीहू ने गाड़ी में बैठते हुए पूछा। ज्यादा दूर नहीं बस पास में ही एक रेस्टोरेंट है वहां चलते है, शुभम ने कहा और गाड़ी आगे बढ़ा ली।
कुछ देर बाद दोनों एक रेस्टोरेंट पर बैठे हुए थे। मैं पहली बार इतनी दूर आईं हूं, पीहू ने कहा। अच्छा, वैसे ये जगह तुम्हे कैसी लगी? शुभम ने कहा। बहुत अच्छी है, पीहू ने सब तरफ देखते हुए कहा।
वो लोग रेस्टोरेंट से बाहर आ गए। तभी पीहू की नजर एक दुकान पर गई और वो उस दुकान के बाहर लगी एक ड्रेस को निहारने लगी। क्या हुआ? तुम्हे ये ड्रेस अच्छी लग रही है? शुभम ने पास आ कर पूछा। हां, ये वहीं ड्रेस है जिसके लिए मैंने पापा से जिद की थी, और पता है उन्होंने कहा था कि एक राजकुमार आएगा और वो मुझे ये ड्रेस देगा, उसने मुस्कुराते हुए कहा। तो तुम्हारे राजकुमार ने तुम्हें ये ड्रेस दे दी? शुभम ने पूछा। नहीं, वैसे भी उस दिन के बाद पापा मुझे उस अनाथ आश्रम पर छोड़ गए, ये कहते हुए पीहू की आंखों में आसूं आ गए थे। सब ठीक होगा, हो सकता है कि तुम्हारे पापा भी कुछ मजबूरियां रहीं हों, शुभम ने कहा। अब ये आंसू बहाना बन्द करो और एक अच्छी सी स्माइल दो, तुम्हारे चेहरे पर मुस्कुराहट बहुत अच्छी लगती है, शुभम ने उसके चेहरे को गौर से देखते हुए कहा तो पीहू का चेहरा कुछ देर के लिए लाल हो गया। हमें अब चलना चाहिए, पीहू ने बात पलटते हुए कहा।
आज मुझे बहुत अच्छा लगा, थैंक्स, पीहू ने गाड़ी से उतरते हुए कहा। इसमें थैंक्स की कोई बात नहीं है, शुभम ने मुस्कुराते हुए कहा। अच्छा सुनो, शुभम ने कहा। जी, पीहू ने पूछा। ये तुम्हारे लिए, शुभम ने कुछ देते हुए पीहू से कहा। ये क्या है? पीहू ने पूछा। बस इसे कमरे पर जा कर देखना, शुभम ने कहा और वहां से चला गया।
शुभम घर पहुंचा तो उसके पापा ने उसे टोक दिया। क्या बात है, आज कल तुम कुछ ज्यादा ही व्यस्त दिखने लगे हो?, उसके पापा ने उससे पूछा। पापा आपको पता ही है कि आज कल मैं अनाथ आश्रम जाता हूं और बच्चों को पेंटिग करना सिखाता हूं, शुभम ने जवाब दिया। बच्चों को पेंटिग सिखाते हो या उस लड़की पीहू से मिलने जाते हो? पापा ने पूछा तो शुभम थोड़ा घबरा सा गया। पापा इसमें दिक्कत ही क्या है? शुभम ने पूछा। दिक्कत है, तभी कह रहा हूं, तुम कल से उस आश्रम नहीं जाओगे, उसके पापा ने कहा। लेकिन पापा……..शुभम कुछ और कह पाता उससे पहले ही उसके पापा ने उसे डांट कर मना कर दिया। अब तुम जा सकते हो, उसके पापा ने कहा तो वो गुस्से में अपने कमरे में चला गया। शुभम के जाने के बाद उसके पापा ने अनाथ आश्रम में फोन मिला दिया।
पीहू बच्चों के साथ थी। तभी सुमन वहां आ गईं। पीहू मुझे तुमसे कुछ बात करनी है, सुमन ने पीहू से कहा। ठीक है बच्चों अब आप सब लोग जाओ, पीहू ने बच्चों से कहा। जी, बच्चों के जाने के बाद पीहू ने पूछा। देखो पीहू तुम मुझे चाहे जो समझो लेकिन मैंने हमेशा तुम्हें अपनी बेटी की तरह समझा है, मैं जानती हूं कि शुभम के साथ तुम्हारा बहुत अच्छा तालमेल बैठ गया है लेकिन तुम्हें ये भी पता होना चाहिए कि उनमें और हममें ज़मीन आसमान का फर्क है, एक तरह उन लोगों की वजह से ही हम सब यहां है, बाकी तुम खुद ही समझदार हो, सुमन ने कहा तो एक पल के लिए पीहू के दिल की धड़कने सी रुक गई लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। मुझे माफ़ कर दीजिए, आगे से आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा, पीहू ने कहा। पीहू कमरे में आ गई। उसका मन बहुत भारी हो रहा था। तभी उसकी नजर उस गिफ्ट पर गई जो कि शुभम ने उसे दिया था। पीहू ने उसे खोला तो उसमें पीहू की तस्वीर थी। पीहू की नजर कोने में लिखे हुए शब्दों पर गई "फॉर पीहू विथ लव फ्रॉम शुभम"। ये पढ़ कर पीहू को रोना आ गया।
अगली सुबह शुभम फिर से अनाथ आश्रम के लिए निकल गया। उसने वहां देखा तो पीहू उसे वहां कहीं भी नहीं दिखी। आप किसे ढूंढ रहें हैं? सुमन ने वहां आ कर पूछा। वो आज पीहू यहां नहीं दिख रही, शुभम ने सब तरफ देखते हुए पूछा। पीहू दो दिन के लिए बाहर गई है, उन्होंने कहा। बाहर ओह अच्छा ठीक है। मिस्टर शुभम जरा मेरे साथ आइए, सुमन ने कहा और शुभम उनके साथ चला गया। आप पीहू के बारे में कितना जानते है? सुमन ने शुभम से पूछा। बस यहीं की उसके पापा उसे यहां छोड़ कर चले गए थे और तबसे वो यहीं रहती है, शुभम ने कहा। आज से कुछ साल पहले पीहू के पापा एक कामयाब बिजनेसमेन थे लेकिन पीहू की मम्मी की बीमारी की वजह से उनका सब कुछ बिक गया फिर भी पीहू की मम्मी नहीं बच पाई और उन पर इतना कर्जा हो गया कि वो अगर पूरी ज़िन्दगी भी उसकी किस्तें भरते तो भी पूरी नहीं कर पाते, क्या आपको पता है कि इस समय पीहू के पापा कहां हैं? सुमन ने शुभम से पूछा। नहीं मुझे नहीं पता, शुभम ने कहा। उसके पापा अब इस दुनिया में नहीं है, यहां पीहू को छोड़ने के बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली थी, सुमन ने कहा। ओह माय गॉड, शुभम ने कहा। पीहू के पापा की बात मैंने आज तक पीहू को नहीं बताई, क्योंकि उसे अब भी यहीं लगता है कि उसके पापा अभी भी जिंदा है और एक ना एक दिन उससे मिलने जरूर आएंगे, मैं कभी नहीं चाहती कि उसे कभी भी दुख या तकलीफ हो, उसने बहुत तकलीफ देखी है। मैं चाहती हूं कि आप भी ये बात समझो कि उसे आपके साथ सिर्फ तकलीफ के अलावा कुछ नहीं मिलेगा, सुमन ने कहा तो शुभम थोड़े निराश मन से वहां से उठ कर चला गया।
कुछ दिन ऐसे ही निकल गए। शुभम पीहू से ना मिल पाने की वजह से बहुत बेचैन हो रहा था। वो रोज़ अनाथ आश्रम जाता और पीहू को ना पाकर वहीं से वापस लौट जाता। एक दिन जब शुभम वापस लौट रहा था तो उसकी नजर बाहर से आती पीहू पर गई। पीहू, शुभम ने आवाज़ दी तो पीहू शुभम को देख कर वापस पीछे मुड़ कर जाने लगी। पीहू, शुभम ने पास आ कर पीहू का हाथ पकड़ लिया। प्लीज आप मेरा हाथ छोड़ दें, पीहू ने शुभम से हाथ छुड़वाने की कोशिश करते हुए कहा। नहीं छोडूंगा, बिल्कुल नहीं छोडूंगा, तुम नहीं जानती कि मैं तुम्हारे बिना कितना अधूरा हूं, शुभम ने कहा। प्लीज शुभम, पीहू की आंखों में आसूं आ गए थे। एक बार बोल दो कि तुम्हें मुझसे प्यार नहीं है, शुभम ने पूछा। नहीं है, पीहू ने कहा तो शुभम के हाथ से पीहू का हाथ छूट गया। पीहू वहां से रोते हुए निकल गई और शुभम वहीं अपनी गाड़ी से लग कर बैठ गया। उसकी आंखों से भी आंसू गिरने लगे थे।
शुभम अपने घर आ गया। कहां गए थे? उसी अनाथ आश्रम गए थे ना? शुभम के पापा ने शुभम से पूछा। हां गया था मैं, बस आपको यहीं सुनना था ना, और जिस लड़की को आप ऐसा वैसा समझते हैं, पता है वो एक समय के फेमस बिजनेसमेन की बेटी थी और मैं उससे बहुत प्यार करने लगा हूं, शुभम ये कह कर अपने कमरे में चला गया। शुभम के पापा कुछ देर तक शुभम को देखते रहे।
अगले दिन पीहू की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब थी, जैसे ही पीहू कमरे से बाहर आई तो तभी चक्कर खा कर गिर पड़ी।
शुभम फिर से उस अनाथ आश्रम जाने की तैयारी कर रहा था कि तभी उसका फोन बज उठा। फोन सुनते ही वो घबरा गया और तेज़ी से गाड़ी निकाल कर अस्पताल की तरफ चला गया। वो अस्पताल पहुंच तो देखा कि सुमन वहीं वार्ड के दरवाज़े पर खड़ी थी। शुभम ने उन्हें देखा और वार्ड के अंदर चला गया। पीहू वहीं लेटी हुई थी। पीहू, शुभम पास आ कर उसका हाथ थाम कर बैठ गया। क्या हो गया है तुम्हें, उसने कहा। शुभम के आंसू गिरने लगे थे। ज्यादा कमजोरी की वजह से इसकी ये हालत हुई है, डॉक्टर ने फिलहाल नींद का इंजेक्शन दे दिया है, सुमन ने कहा। शुभम……..पीहू नींद में शुभम का नाम ले कर कराही। मैं यहीं हूं, तुम्हारे पास, और अब मैं तुम्हें खुद से कभी भी दूर नहीं करूंगा, शुभम ने पीहू का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा। दोपहर तक पीहू को होश आ गया था। पीहू ने उठने कि कोशिश की तो देखा शुभम वहीं था उसके पास। आप यहां? उसने धीरे से कहा। हां मैं, शुभम ने सूप कि कटोरी लाते हुए कहा। चलो अपना मुंह खोलो, शुभम ने कहा। मैं खुद से ले लूंगी, पीहू ने धीरे से कहा। तुम बहुत जिद्दी हो, अब तुम कुछ नहीं बोलोगी, शुभम ने कहा और उसे सूप पिलाने लगा। आप ने कुछ लिया?, पीहू ने पूछा। मैं ले लूंगा, शुभम ने कहा। चलिए ये कटोरी मुझे दीजिए, मैं आपको खिलाती हूं, पीहू ने कहा। पीहू मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं, प्लीज कभी भी आगे से ऐसे मत करना, जान पर बन जाती है मेरी, शुभम ने कहा तो पीहू के चेहरे पर थोड़ी उदासी छा गई। देखो तुमने फिर से ऐसे ही चेहरा बना लिया है, शुभम ने कहा तो पीहू के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कुराहट आ गई।
शाम को पीहू को अस्पताल से छुट्टी मिल गई और पीहू वहीं अनाथ आश्रम आ गई। शुभम का वहां से जाने का मन नहीं था लेकिन जब सुमन और पीहू ने कहा तो वो सुबह का कह कर वहां से आ गया।
सुबह ही शुभम अनाथ आश्रम जाने के लिए तैयार होने लगा। उसके हाथ में एक तस्वीर थी जो उसने खुद ही बनाई थी। शुभम जब बाहर के लिए निकला तब उसके पापा बाहर ही खड़े थे। तुम जब तक मेरी नाक नहीं कटवा दोगे तब तक तुम रुकोगे नहीं, है ना? उन्होंने गुस्से में कहा। अब मैं किसी भी कीमत पर नहीं रुकूंगा, शुभम ने कहा। उन्होंने शुभम को रोकने की कोशिश की तो वो तस्वीर नीचे गिर गई और उसका शीशे का फ्रेम टूट गया। ये आपने क्या किया, मैंने कितनी मेहनत से ये तस्वीर बनाई थी। शुभम के पापा ने जब वो तस्वीर देखो तो चौंक पड़े। ये तस्वीर तुम्हारे पास कैसे आई, उन्होंने पूछा। ये पीहू और उसके पापा की तस्वीर है, पीहू ने एक बार मुझसे ये तस्वीर बनाने के लिए कहा था, शुभम ने कहा तो उसके पापा को एक झटका सा लगा और वो वहीं सोफे पर बैठ गए। शुभम वहां से वो तस्वीर लेकर निकल गया। शुभम के पापा को वहीं पुरानी बातें याद आने लगी, जब वो बिजनेस में संघर्ष कर रहे थे और एक इंसान ने उनकी मदद की थी। उसके बाद दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी। शुभम के पापा को कुछ सालों के लिए विदेश जाना पड़ा जिसकी वजह से उनका अपने दोस्त से संपर्क टूट गया और जब वो वापस आए तो उनका दोस्त हमेशा के लिए दुनिया से जा चुका था, संजय, उनके मुंह से निकला तो क्या पीहू उसकी बेटी है, उन्होंने सोचा और तेज़ी से अनाथ आश्रम की तरफ निकल गए।
शुभम पीहू के साथ बैठा था। पीहू शुभम के कंधे पर सर रख कर बैठी हुई थी। मुझे तुमसे तुम्हारे पापा के बारे में कुछ कहना है, शुभम ने कहा। मुझे पता है कि आप क्या कहोगे, पीहू ने शुभम को देखते हुए कहा। तुम्हें पता है सब? शुभम ने पीहू को चौंक कर देखते हुए पूछा। हां कुछ सालों बाद ही मुझे पता लग गया था लेकिन मैंने कभी किसी के सामने जाहिर नहीं होने दिया, पीहू ने कहा। मेरे पापा बहुत अच्छे थे, मैं जानती हूं कि उन्होंने मुझे बचाने के लिए पूरी कोशिश की थी, ये कहते हुए पीहू की आंखों में आसूं आ गए थे। तुम्हारे पापा वाकई में बहुत अच्छे थे। पीछे से आवाज़ आई तो पीहू और शुभम ने पीछे मुड़ कर देखा तो दिग्विजय वहां खड़े थे। उन्हें देखते ही शुभम ने पीहू का हाथ कस कर थाम लिया। मैं तुम दोनों को अलग करने नहीं आया हूं बल्कि पीहू से माफी मांगने आया हूं, उन्होंने कहा। ये आप क्या कह रहे हैं, पीहू ने घबराकर पूछा तो उन्होंने सारी कहानी सुना दी। मैं तुम दोनों को अलग करना चाहता था और अब मैं ही चाहता हूं कि तुम दोनों की जल्दी से जल्दी शादी हो जाए, उन्होंने ऐसे कहा तो शुभम ने पीहू की तरफ शरारत से देखा और पीहू शरमा गई।
अगले दिन शुभम ने पीहू का हाथ पकड़ा और गाड़ी में बैठा लिया। आपको क्या हुआ है? पीहू ने पूछा तो शुभम ने कुछ नहीं कहा, सीधा गाड़ी आगे बढ़ा ली और फिर एक जगह आ कर रोक दी। आओ मेरे साथ, शुभम पीहू का हाथ पकड़ कर एक जगह ले गया। ये लो, शुभम ने पीहू को एक बड़ा पैकेट देते हुए कहा। ये क्या है? पीहू ने पूछा। खोल कर देखो, शुभम ने कहा। पीहू ने देखा तो उसमें वहीं ड्रेस थी जो उसने अपने पापा से लेने के लिए जिद की थी। वो ड्रेस तुम्हारे हिसाब से बहुत छोटी रह गई थी तो मैंने उसी कि तरह इस ड्रेस को ढूंढने के लिए पूरा शहर छान मारा, तो अब तो तुम्हे तुम्हारे राजकुमार ने ड्रेस दे दी है तो अब तो बोल दो की मैं ही तुम्हारा राजकुमार हूं, मेरी राजकुमारी, शुभम ने मुस्कुरा कर कहा तो पीहू शुभम के सीने से लग गई। माय प्रिंस, मेरे राजकुमार, उसने बोला……
(समाप्त)