ना जाने क्यों तेरे यादों के धागों मे उलझते जाते है,
रात को तेरे घर के रास्ते मुझे जुगनू बताते है,
तेरे साथ जीना जब मुकम्मल ही नहीं होता,
तो बिन तेरे हम मर क्यों नहीं जाते है,
मै भी चाहता हूं कोई हो जिसको केवल मेरी तलाश हो,
फिर खुद को देखकर केवल मुस्कुराते है,
तेरा दीदार होना किसी जन्नत से कम नहीं
साथ में बिताए लम्हे मुझे फिर से याद आते है,
मै जानता हूं तुमने बदल लिया है शहर अपना,
लेकिन आज भी तेरे गली के चक्कर लगाते है,
तेरा नाम से जोड़ते है लोग नाम मेरा,
मेरे ही मोहब्बत का क्यों मजाक उड़ाते है,
तेरा ज़िक्र आज भी है मेरे जुबान पर,
किताबों के सूखे गुलाब याद तेरी दिलाते है,