भटकता है खुद ही मंजिल के तलाश में ,
रास्तों में गिर कर संभलता है,
जिनको नहीं देता कोई भी सहारा ,
उन्हे अकेले ही सफर मे निकलता है,
जिसने गुजार दी उमरे तमाम ठोकर खाते खाते,
उन्हे कहां दिल दुखाकर किसी का सुकून मिलता है,
कमियाबी यूं ही नहीं मिलती किसी को ,
कभी कभी इसे पाने के लिए वो नंगे पांव भी चलता है,
सुखद एहसास की कामना मे हो,
पता भी है इसकी तलाश खुद कितनी देर तक जलता है,
आज असफल हुए हो कल जीत भी होगी क्यों खामखां ही चुनौतियों से डरता है,
जो कुछ नहीं कर सकता है जीवन में, वही लोगो मै कमियां तलाश करता है,
जो डर रहा है जमाने भर की बातो से वो भला कहां दरिया पार करता है,
कहां हुई है अभी विजय तेरी जो सब को पराजित कर देगा,
बदले के भाव में क्यों हर रोज तिल तिल मरता है,