शीर्षक चांद भी दीवाना लग रहा है
तुम तो पर्दे मे कमाल लगते हो,
सब से अलग बेमिसाल लगते हो,
यादों से तुम मेरे जाते नहीं हो,
हर किसी को लुभाते रहे हो,
मुझे तेरी हर एक अदा पागल कर जाती है,
मानो हर रात कोई सपना दिखाती है,
जो नहीं मिलती मुझे सब के सामने,
वही ख्वाबों में मिलने आती है,
जैसे कोई अफसाना लिख रहा है,
ये चांद भी तेरा दीवाना दिख रहा है,
मुझे याद है तेरा यूं मुस्कुराना ,
आंखो से ही सब कुछ कह जाना,
जब तुम मुझे अपना बताते थे,
ये कहने में भी तो बहुत शरमाते थे,
तुम बालों को जब जब संवारती थी,
प्यार से मुझे ए जी पुकारती थी,
मै अब तक नहीं भूला तेरे हाथ खाना,
मेरे हल्की सी चोट पे आंखो में आंसू आना,
मुझे अच्छा तुझसे दिल लगाना लग रहा है,
ये चांद भी तेरा दीवाना लग रहा है,
तुम्हे पसंद था ही नहीं कोई भी मेरा बाद,
खुश थे दोनों एक दूजे के साथ,
मुझे भी तुम्हारा ही इंतजार रहता था,
प्यार था कि नहीं ,
लेकिन मै भी मिलने को बेकरार रहता था,
मै तो तेरा ही रहूंगा ये वादा किया था ,
शायद तुम ने वादा निभा ही लिया था,
मेरे एक गलती ने तुम्हे खो दिया,
मै हंसते हंसते फिर से एक बार रो दिया,
पाने की जिद मे चंद खुशियां ,
मैंने तुमको। खो दिया,
अब दुनिया भी मुझे पागल खाना लग रहा है,
ये चांद भी तुम्हारा दीवाना लग रहा है,
पवन अमित त्रिवेदी कनपुरिया भाऊ