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नाटक: भोलाराम का जीव

11 अक्टूबर 2023

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[मैंने परम  श्रद्धेय स्वर्गीय श्री हरिशंकर परसाईं के जन्म शती वर्ष में उनको श्रद्धांजलि स्वरुप उनकी कहानी भोलाराम का जीव पर ये नाटक लिखा है]

(एक व्यक्ति मेज पर रखी डायरी पर कुछ लिख रहा है)

सूत्रधार:   हरिशंकर को जानते हैं आप.... क्या? आप जानते हैं.... कौन?, अरे वो नहीं.... न न गुप्ता जी नहीं, श्रीवास्तव जी भी नहीं.... मैं बात कर रहा हूँ उस हरिशंकर की जोकि धरती पर 1924 में अवतरित होकर 1995 में अनंत यात्रा पर चला गया और इस बीच निठ्ल्ले की डायरी से गुजरते हुए, प्रेमचंद्र के फटे हुए जूतों पर गौर करते हुए पूरे ब्रहमांड पर नजर रखे   हुए था ... वही हरिशंकर जिसने इंस्पेक्टर मातादीन को चाँद पर भेज दिया था.... हाँ, यस, वही..... अब  आपने सही अंदाजा लगाया... हरिशंकर परसाई... जिनका जन्मशती वर्ष चल रहा है.... परसाई जिन्होंने व्यंग्य को भी साहित्यिक विधा में सुचारू रूप से स्थापित किया... ऐसे व्यंग्य जो आज भी प्रासंगिक हैं.... वही हरिशंकर परसाई एक बार यमलोक की ओर अपनी पैनी दृष्टि डालते हुए क्या देखते हैं........ क्या देखते हैं...... आप देखिये......

(लोगों का ध्यान चित्रगुप्त और धर्मराज की ओर जाता है,

चित्रगुप्त अपने लैपटॉप पर कुछ सर्च कर रहे हैं

और परेशानी की हालत में कुछ बडबडा रहे हैं)

चित्रगुप्त:  ऐसा तो कभी नहीं हुआ

धर्मराज:  क्या हुआ चित्रगुप्त जी

चित्रगुप्त: लाखों वर्षों से असंख्य प्राणियों को कर्मों और सिफारिशों के आधार पर स्वर्ग या नरक अलॉट करते रहे मगर...... आज तक ऐसा
कभी नहीं हुआ

धर्मराज: मतलब क्या हो गया

चित्रगुप्त: धर्मराज जी, सब रिकॉर्ड ठीक है .... भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्याग दी थी और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ था, पर...... अभी तक पहुंचा नहीं यहाँ .. अब तक तो हर हाल में आ जाना चाहिए था

धर्मराज: और वह दूत कहाँ है

चित्रगुप्त: महाराज! वह भी लापता है

(एक यमदूत बदहवास सा भागता हुआ पहुँचता है जो सबसे पहले
चित्रगुप्त को दिखाई देता है)

चित्रगुप्त: अरे... ये रहा महाराज ...... दूत...... भाई तू कहाँ रहा इतने दिन... भोलाराम का जीव कहाँ है ....

यमदूत या दूत: (हाथ जोड़कर) दयानिधान! मैं कैसे बतलाऊ कि कहाँ है .... आज तक मैने धोखा नहीं खाया पर भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया

चित्रगुप्त: तुमने ट्रैकिंग डिवाइस नहीं फिट की थी क्या  डिलीवरी से पहले

दूत: की थी ...... पर शायद बैट्री लो थी, ख़त्म हो गई ...... पर महाराज पाँच दिन पहले जब भोलाराम के जीव ने देह त्यागा तो उसे पकड़ कर मैं..... एक तीव्र वायु-तरंग पर सवार हुआ ...... यहाँ आने ही वाला  था कि .... वह मेरे चंगुल से छूटकर न जाने कहाँ गायब हो गया ........ सारा ब्रह्माण्ड छान मारा... पर वो नहीं मिला

चित्रगुप्त: पहली बात तो यार ये चाइना मेड बैट्री लगाना बंद करो ... अब तो पाकिस्तान का भी मोह भंग हो रहा है चाइना से ... और अगर  ऐसा शातिर जीव था तो अकेले क्यों गए ... हवलदार गुलशन को साथ ले जाते

दूत: आपके पास तो पूरा रिकॉर्ड है .. चेक कर लीजिये.... बिलकुल निरीह प्राणी था .... भारतवर्ष जैसे सीधे-सरल देश का  सरकारी नौकर....

धर्मराज: ये तो टोटल नेग्लिजेन्स है..... इस दूत को ODI लिस्ट में डालो...... बल्कि मैं तो कहता हूँ कि ससपेंड करो इसको ... या फिर 56-J में बाहर करो ............. (दूत से मुखातिब होकर) मूर्ख ........ जीवों को लाते-लाते बूढ़ा हो
गया फिर भी ... एक मामूली बूढ़े निरीह आदमी के जीव ने तुझे चकमा दे दिया ...... थोडा सावधान नहीं रह सकता था

दूत: क्षमा महाराज क्षमा ! .... मेरी सावधानी में कोई कसर नहीं थी ... मेरे इन अभ्यस्त हाथों से तो अच्छे-अच्छे वकील भी नहीं छूट सके ..... पर इस बार तो लगता है कोई जादू हो गया हो

धर्मराज: वो जादू कहीं .. रिश्वत तो नहीं

दूत: (दोनों कानों पर हाथ रखकर, चित्रगुप्त की ओर मुखातिब होकर) महाराज! .... बचा लो, आप तो मेरे बारे में सब जानते हैं

चित्रगुप्त: (धर्मराज से) धर्मराज, आजकल पृथ्वी पर एक व्यापार चल पड़ा है ...... किसी की मंगाई हुई चीज कोई और उड़ा देता है..... लोग दोस्तों को कुछ चीज भेजते हैं और रास्ते में ही रेलवे वाले उड़ा देते हैं .... होजरी के पार्सल के मोज़े रेलवे के अफसर पहनकर घूमते हैं ....... ज़ोमैटो वाले खाना पहले ही चख लेते हैं..... अमेज़न-फ्लिपकार्ट पर भेजे गए आई-फ़ोन के बदले ईंट-पत्थर निकल आते हैं ... चुनाव के समय तो राजनैतिक दलों के नेता दुसरे दल के नेता को उड़ाकर बंद कर देते हैं.... (कुछ सोचकर) कहीं भोलाराम के जीव को भी तो किसी विरोधी ने सिस्टम को बदनाम करने के लिए तो नहीं उड़ा दिया

धर्मराज: तुम्हारा नाम भी एग्रीड लिस्ट में डाल दूँ क्या ... बहुत सपोर्ट कर रहे हो इसका ... रिटायर होने की उम्र आ गई लगती है

चित्रगुप्त: (थोड़ा नाराज़ होकर) हाँ... दल दीजिये, जितने कामकाजी, मेहनती लोग हैं, सबको डाल दीजिये इस लिस्ट
में..... फिर देखतें हैं की चमचों के दम पर कैसे चलाएंगे अपना ये कार्यालय

धर्मराज: (चित्रगुप्त को थोड़ा शांत करते हुए) मेरा मतलब है कि भोलाराम जैसे नगण्य, निचोड़, निकृष्ट, दीन-हीन सरकारी आदमी से किसी को क्या लेना-देना ..... आप चाय पियेंगे आज हमारे साथ

(यमदूत का इस बीच प्रस्थान और नारद मुनि का आगमन होता है)

नारद: नारायण-नारायण (दोनों के नमस्कार का जबाब देकर, धर्मराज से मुखातिब होकर) क्यों धर्मराज जी, कैसे चिंतित बैठे हैं ... क्या नर्क में निवास स्थान की समस्या अभी तक हल नहीं हुई..... आपके नरक में तो एक से बढ़कर एक ठेकेदार मौजूद हैं..... जो मात्र चालीस प्रतिशत ग्रांट से ही निर्माण कर लेते हैं ... वो बात अलग है कि कभी-कभी उनके बनाये पुलों के गिर जाने से कई जानें चली जाती हैं.... पर आपको उनपर भरोसा ही नहीं.... जब अपने लिए बनायेंगे तो नहीं गिरेगी इमारत.... इतना जान लीजिये

धर्मराज: महर्षि, जिस रफ़्तार से धरती पर आदमी की आबादी बढ़ रही है और जिस रफ़्तार से वो पाप कर रहा है ...... तो नरक में डिमांड और सप्लाई का अंतर पाटना लगभग असम्भव हो गया है ..... परन्तु आज तो एक अलग ही समस्या खड़ी हो गई है

नारद: वो क्या धर्मराज

धर्मराज: भोलाराम नाम के एक आदमी की पाँच दिन पहले मृत्यु हुई.... उसके जीव को यमदूत यहाँ ला रहा था की जीव दूत को रास्ते में चकमा देकर भाग गया ... दूत ने सारा ब्रह्माण्ड छान मारा, पर वह कहीं नहीं मिला.... अगर ऐसा होने लगा तो पाप और पुण्य का भेद ही मिट जायेगा

नारद: कहीं उसपर इनकम टैक्स तो बकाया नहीं था.... हो सकता, उन लोगों ने रोक लिया हो ... आप कहो तो पता करें, इनकम टैक्स की चीफ कमिश्नर यहीं पर हैं

चित्रगुप्त: इनकम होती तो टैक्स होता, भूखमरा तो था

नारद: कहीं मुफ्त के राशन की लाइन में तो नहीं लगा है या कहीं से 2000 का नोट हाथ लग गया हो.... बदलवाने गया हो ... (दर्शकों  की  ओर  मुखातिब  होकर)  मैनेजर साहब जरा चेक तो करवाइए ब्रांच में .............. वैसे जो भी हो, मामला है बड़ा दिलचस्प....... अच्छा उसका नाम-पता बताइए.... मैं तो पृथ्वी पर आता-जाता रहता हूँ, कुछ पता करता हूँ

चित्रगुप्त: भोलाराम नाम था उसका.... गाज़ियाबाद शहर के कैला-भट्टा मोहल्ले में नाले के किनारे एक डेढ़ कमरे के टूटे-फूटे मकान में वह परिवार समेत रहता था..... उसकी एक स्त्री थी, दो लड़के और एक लड़की..... उम्र लगभग 65 साल... सरकारी नौकर था .... पाँच साल पहले रिटायर हो गया था...... बड़ा ढीठ था, रिश्वत नहीं लेता था..... एक साल से मकान का किराया नहीं दिया उसने, इसलिए मकान मालिक उसे निकालना चाहता था मकान से .. पर उससे पहले वो संसार से निकल लिया... आज पाँचवा दिन है ... बहुत संभव है कि अगर मकान-मालिक असली मकान-मालिक है तो उसने भोलाराम के मरते ही उसके परिवार को निकाल दिया होगा... इसलिए आपको परिवार की तलाश मैं भटकना पड़ सकता है....

नारद: कोई बात नहीं चित्रगुप्त जी.... आबादी कितनी भी बढ़ जाये एक योगी की निगाह जरूरतमंद को ढूँढ ही लेगी

(दृश्य बदल जाता है, नारद जी माँ-बेटी के क्रंदन से ही भोलाराम के परिवार को पहचान लेते हैं)

नारद: (दरवाजे पर जाकर) नारायण – नारायण

भोलाराम की पुत्री: ये कौन भीख मांगने आ गया..... आगे जाओ बाबा ..... यहाँ कुछ नही मिल पायेगा....

नारद: मुझे भिक्षा नहीं चाहिए बेटी... मैं तो भोलाराम के बारे में कुछ पूँछ-तांछ करने आया हूँ, जरा अपनी माँ को  बुलाना तो बेटी

भोलाराम की पुत्री: माँ देखो अब ये कौन से योगी हैं.... पिताजी के बारे में पूँछ-तांछ करना चाह रहे हैं

(भोलाराम की पत्नी का प्रवेश)

नारद: नारायण नारायण माते, भोलाराम को क्या बीमारी थी

भोलाराम की पत्नी:  क्या बताऊँ, गरीबी की बीमारी थी...... पाँच साल हो गए, पर अभी तक पेंशन नहीं मिली... हर दस-पन्द्रह दिनों में एक दरख्वास्त देते थे वो, पर या तो जबाब नहीं आता था या फिर आता भी था तो ये कि तुम्हारी पेंशन पर विचार हो रहा है.....

भोलाराम की पुत्री: एक बार एक बाबू पिताजी से कह रहा था कि तुम्हारी दरख्वास्त हल्की हैं, इन पर वजन नहीं है

भोलाराम की पत्नी:  गहने, बर्तन-भांडे सब बिक गए इन पाँच साल में, अब कुछ नहीं बचा.... चिंता में घुलते-घुलते और भूखे मरते-मरते दम तोड़ दिया उन्होंने ........

नारद: क्या करोगी माते ..... उनकी इतनी ही उम्र थी .....

भोलाराम की पत्नी: ऐसा मत कहो महाराज.... उम्र तो बहुत लम्बी थी उनकी, RDC के ज्योतिषी
ने भविष्यवाणी की थी..... पेंशन मिल जाती तो थोड़ा-बहुत काम करके गुजारा हो सकता था.... पर क्या करें ..... पेंशन वालों ने असमय हत्या कर दी उनकी.... कभी-कभी तो वो सोचते थे कि शायद पोस्ट-ऑफिस ने गलती तो नहीं की पेंशन आर्डर पहुँचाने में ...... आज ज़िन्दा होते तो लगे हाथ यहाँ बैठे पोस्टल डायरेक्टर से पूंछ लेते.... उनके दिल को चैन आ जाता.....

नारद: माते, ये बताओ कि किसी से उनका विशेष प्रेम था...... जिसमें अभी तक उनका जी लगा हो

भोलाराम की पत्नी: लगाव तो महाराज, बाल-बच्चों से ही होता है ...

नारद: और परिवार के बाहर किसी से...... मतलब कोई रम्भा या फिर खम्बा .....

भोलाराम की पत्नी: सावधान..... आप योगी जी जैसे लग रहे हैं इसलिए कुछ नहीं बोल रही हूँ आपको...... ज़िंदगी भर उन्होंने कभी किसी दूसरी स्त्री की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा .... और शराब का तो नाम लेना भी पसंद नहीं करते थे

नारद: (हँसकर) ये यकीन, ये विश्वास माते, यही हर अच्छी गृहस्थी का आधार है..... ये विश्वास कभी भी नहीं टूटना चाहिए ...... अच्छा माते, मैं चला...

भोलाराम की पत्नी: महाराज! आपके मुखमंडल का तेज बता रहा है कि आप कोई सिद्ध पुरुष हैं.... महाराज क्या आप कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि उनकी रुकी हुई पेंशन मिल जाये... बच्चों का पेट भरने का साधन हो जाये....

नारद: (दया-भाव के साथ) साधुओं-फक्कड़ों की बात कौन मानता है.... और फिर मेरा तो कोई मठ-मज़ार भी नहीं.... फिर भी मैं उस सरकारी दफ्तर मैं जाऊँगा.... आपके लिए कोशिश करूँगा माते....

(नारद सरकारी दफ्तर पहुँचते हैं)

चपरासी: (नारद की चहलकदमी को रोककर) महाराज, आप बेकार एक बाबू से दूसरे बाबू, दूसरे से तीसरे भटक रहे
हैं.... अगर आप साल भर भी यहाँ चक्कर लगाते रहे तो भी आपका काम नहीं होगा.... आप तो सीधे बड़े साहब से मिलिए.... उन्हें खुश कर दिया तो अभी काम हो जाएगा....  (नारद जी की करतालों को देखकर)  अब इस सलाह के बदले कुछ तो देते जाइये (नारद बेमन से अपनी करतालें चपरासी को थमा देते हैं)

(नारद बड़े साहब के कमरे में जाते हैं)

नारद: नारायण – नारायण

साहब: (नाराज़ होकर) कौन हो तुम... बिना चिट दिए अन्दर कैसे घुस आये.... धर्मशाला समझ रखा है क्या....

नारद: चिट कैसे भेजता ...... आपका चपरासी तो सो रहा है .....

साहब: (रौब से) ठीक है-ठीक है, अपना विजिटिंग कार्ड दो....

नारद: मेरा कोई विजिटिंग कार्ड नहीं है.... इस योगी का सिर्फ नाम ही काफी है

साहब: बिना विजिटिंग कार्ड के भी कोई आदमी होता है क्या.... अच्छा चलो बताओ क्या काम है

नारद: एक कोई पाँच दिन पहले मरे जीव भोलाराम की पेंशन का केस है..... मैं उसकी पत्नी को पेंशन चलवाने का वचन दे आया हूँ

साहब: देखो आप है बैरागी, आपको किसी वचन में नहीं बंधना चाहिए... देखिये दफ्तरों के रीति-रिवाज से आपका परिचय नहीं है .... दरअसल भोलाराम ने गलती की.... भाई, यह भी एक मंदिर है, दरगाह है.......... यहाँ भी दान-पुण्य करना पड़ता है, चादर चढ़ानी पड़ती है..... आप भोलाराम के हितैषी जान पड़ते है इसलिए आपको बताता हूँ.... भोलाराम इस दफ्तर में दरख्वास्त तो देता था ... पर उनपर वजन नहीं रखता था........ भोलाराम की दरख्वास्तें उड़ रहीं हैं, उनपर वजन रखिये.....

नारद: (स्वागत) यहाँ भी वजन की समस्या खडी हो गई.... जिस बाबू के पास जाता था वो वजन की बात करता था.... भोलाराम की बेटी भी वजन की बात कर रही थी..... मेरी तो करताल ही लेली चपरासी ने यह कह कर कि अपनी बात
में वजन पैदा करो.....

साहब: क्या सोच रहे हैं महाराज.... देखिये मैं समझाने की कोशिश करता हूँ......

नारद: समझाइए

साहब: भाई, सरकारी पैसे का मामला है.... पेंशन का केस बीसों दफ्तर में जाता है... देर लग ही जाती है ... बीसों बार एक ही बात को बीस जगह लिखना पड़ता है, तब पक्की होती है..... जितनी पेंशन मिलती है उतने की तो स्टेशनरी लग जाती है ..... हाँ, जल्दी भी हो सकती है मगर......

नारद: मगर क्या

साहब: वजन, साधू बाबा वजन चाहिए

नारद: पहेली मत बुझाइए और बताइए कि आखिर क्या बला है ये वजन

साहब: ऊँह  हूँ..... आप समझे नहीं.... वजन  कई तरह के हो सकते हैं.... जैसे फ़िलहाल आपकी यह सुन्दर वीणा है, इसका भी वजन भोलाराम की दरख्वास्त पर रखा जा सकता है.... मेरी लड़की आजकल गाना-बजाना सीख रही है.... यह मैं उसे दे दूँगा..... साधु-संतों की वीणा से तो और अच्छे स्वर निकलते हैं....

नारद: (अपनी वीणा छिनते देखकर जरा घबराये फिर संभल कर अपनी वीणा टेबल पर रखकर)..... यह लीजिये, अब जरा जल्दी से उसकी पेंशन का आर्डर निकल दीजिये

साहब: (प्रसन्नतापूर्वक वीणा उठाकर तार छेड़ते हुए) किसका आर्डर..... क्या नाम बताया आपने बाबा .........

नारद: भोलाराम

साहब: (अपनी ही धुन में वीणा के तारों को छेड़ते हुए) क्या नाम बताया

नारद: भोलाराम..... भोलाराम.... (जोर से बताते हैं)

(प्रत्युत्तर में फाइल से भोलाराम की आवाज आती है)

भोलाराम: कौन पुकार रहा है मुझे..... पोस्टमैन है क्या..... क्या पेंशन का आर्डर आ गया......

नारद: (चौंककर, कुछ समझते हुए) भोलाराम ...... तुम क्या भोलाराम के जीव हो .....

भोलाराम: हाँ-हाँ, मैं भोलाराम ही हूँ

नारद: मैं नारद हूँ, ब्रह्मर्षि नारद....  जानते तो होगे... तुम्हें लेने आया हूँ..... चलो स्वर्ग में तुम्हारा इन्तेजार हो
रहा है....

भोलाराम: मुझे नहीं जाना स्वर्ग.... मैं तो पेंशन की दरख्वास्तों पर अटका हूँ .... यहीं पर मेरा मन लगा है..... मैं अपनी
दरख्वास्तें छोड़कर नहीं जा सकता.... ये सब उड़ा देंगे... मैं नहीं जा सकता....

नारद: (मोबाइल से फोन मिलाते हैं)  चित्रगुप्त जी....... आपकी समस्या हल हो गई... भोलाराम का जीव ओल्ड पेंशन स्कीम की फाइलों के बीच दबा पड़ा है.... कहीं भाग नहीं पायेगा...... दूत भेजिए, अपना पार्सल ले जाये.... मैंने ट्रैक कर लिया है और वजन भी रख दिया है....... नारायण-नारायण

(स्टेज पर उपस्थित कलाकार फ्रीज हो जाते हैं और मंच के एक कोने से  सूत्रधार  का  प्रवेश होता है)

सूत्रधार: यमदूत आते हैं और भोलाराम की आत्मा को पेंशन की फाइलों से किसी तरह खुरच-खुरच कर निकालते हैं..... ऑफिस की फाइलों में ज़िंदगी भर कैद रहा भोलाराम शायद पेंशन की फाइलों में अभी भी दबा रह जाता अगर उसकी दरख्वास्तों पर वजन न रख दिया जाता... साहब की लड़की संगीत सीख लेगी और शायद भोलाराम के परिवार को पेंशन भी मिल जाएगी..... पर हो सकता है फिर कहीं किसी और भोलाराम का जीव किसी और दफ्तर की फाइल के नीचे दबा हो..... खैर हरिशंकर परसाई जी की दृष्टि यमलोक से वापस आ जाती है और कहानी समाप्त हो जाती है......

(सूत्रधार  कहानी समाप्त  होने  के  प्रतीक  स्वरुप  सांकेतिक तौर पर डायरी बंद कर देते हैं)

नाट्य-रूपांतरण एवं संवाद:- दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

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रचनाएँ
हरिशंकर की परछाईं
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हास्य-व्यंग्य की रोचक यात्रा नाटक विधा के रूप में ....... आशान्वित हूँ कि आपको पसंद आएगा
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नाटक: भोलाराम का जीव

11 अक्टूबर 2023
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[मैंने परम  श्रद्धेय स्वर्गीय श्री हरिशंकर परसाईं के जन्म शती वर्ष में उनको श्रद्धांजलि स्वरुप उनकी कहानी भोलाराम का जीव पर ये नाटक लिखा है] (एक व्यक्ति मेज पर रखी डायरी पर कुछ लिख रहा है) सूत्रधा

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