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भोलाराम का जीव 2.0

4 नवम्बर 2023

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सूत्रधार- प्रख्यात व्यंगकार श्रद्धेय श्री हरिशंकर परसाई जी की कृति भोलाराम का जीव तो आपने पढ़ा ही होगा । अगर नहीं पढ़ा तो इसी ऑफिस में हुआ नाट्यमंचन तो याद होगा। चलिये कोई बात नहीं हम संक्षिप्त में बता देते हैं। हुआ यूं कि भोलाराम का जीव यमलोक ले जाते समय, यमदूत की पकड़ से छूट गया और निकल भागा । यमलोक का खाता ही डिस्टर्ब हो गया है । बैलेन्स शीट को मैनेज करना भारी पड़ने लगा है । यमलोक के अधिकारियों, कर्मचारियों की इंकवायरी बैठने की स्थिति आ गई । तब ब्रह्मर्षि नारद ने भोलाराम के जीव को ढूंढने का बीड़ा उठाया और धरती पर ढूंढने लगे उसको । नारद जी को अथक प्रयासों के बाद भोलाराम का जीव पेंशन की फाइलों के बीच दबा हुआ मिला । पेंशन चालू ना होने की वजह से बेचारे का जीव मुक्त नहीं हो पा रहा था... मुक्त नहीं हो पा रहा है... क्या भोलाराम के जीव को मुक्ति मिल पाएगी ? आइए देखते हैं .............. भोलाराम का जीव-2.0

(मँच के पीछे से भोलाराम की आवाज आती है)

भोलाराम– मुझे नहीं जाना....

नारद– अरे भोलाराम... बाहर निकलो, मैं तुम्हें स्वर्गलोक ले जाने के लिए आया हूँ.... (नारद जी का कुछ ढूँढते हुए मंच पर प्रवेश होता है)

भोलाराम– मुझे स्वर्गलोक भी नहीं जाना....

नारद– जिसके शरीर की अन्त्येष्टि तक हो चुकी हो, वो इस संसार में कैसे रुक सकता है? चलो भोलाराम... ये जगत तो एक सराय मात्र है..... इतना मोह मत करो....

भोलाराम– जब तक मेरी पेंशन नहीं बंधेगी... मैं यहीं रहूँगा, मैं कहीं नहीं जाऊंगा...

नारद- (ब्रह्मर्षि नारद भोलाराम के जीव को काफी समझा-बुझा कर पेंशन की फाइल के बीच से निकालकर उनको सांत्वना देते हैं) भोलाराम जी, मैं तुम्हारा कष्ट हरने का हर संभव प्रयास करूंगा। अब तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नहीं है, तुमने कोई पाप नहीं किया, अब उनकी बारी है जिन्होनें तुम्हारी आत्मा को मुक्त नहीं होने दिया। देखो, हमने समय के अनुकूल अपने वस्त्रों में परिवर्तन कर लिया है और मैं तुमको भी एक अस्थाई  शरीर प्रदान करता हूँ अब तुम मेरे साथ – साथ सबको दिखोगे, जब तक तुम्हारी आत्मा की संतृप्ति नहीं होती यमदूत तुम्हे हाथ भी नहीं लगा पाएगा।

(मँच पर भोलाराम का आगमन होता है, जोकि करीब पैंसठ-छांछठ वर्ष का एक कृषकाय व्यक्ति है)

भोलाराम: (नारद को देखकर) क्या आप सही कह रहे हैं महोदय, क्या सचमुच मेरे मन की संतृप्ति तक यमदूत मुझे हाथ नहीं लगा पाएंगे।

नारद: ब्रह्मर्षि झूठ नहीं बोला करते,  मुझ पर भरोसा रखो पुत्र मैं तुम्हारी समस्या को समझ चुका हूँ ।

(भोलाराम आगे आता है और हाथों से अपने शरीर को स्पर्श करके महसूस करने  की कोशिश करता है।)

नारद- पुत्र तुम्हे विश्वास नहीं हो रहा है क्या कि तुम्हें शरीर मिल चुका है ?

भोलाराम- जी ब्रह्मर्षि एक बार मरने के बाद शरीर कैसे प्राप्त हो सकता है?

नारद: तुझे विश्वास नहीं हो रहा है तो ये ले......

(डंडा भोलाराम के सर पर मारते हैं और भोलाराम की चीख निकल जाती है, भोलाराम को दर्द का आभास होता है)

भोलाराम: (पूरे शरीर में हाथ लगाते हुए) ये तो चमत्कार है, मुझे तो लगा कि मैं मर चुका हूँ, फिर मुझे दर्द का आभास कैसे हुआ, स्पर्श का अनुभव भी हुआ, मतलब मैं अभी ज़िंदा हूँ, मेरा शरीर अभी जीवित है, पर मुझे तो फूँक दिया था उन लोगों ने, क्या मैं सपना देख रहा था?  ये सब क्या है, क्या नाम बताया आपने अपना.....

नारद: ब्रह्म ऋषि नारद।

भोलाराम: ब्रह्म ऋषि नारद....? मतलब बी. आर. नारद.! इस नाम का तो कोई जादूगर भी नहीं सुना आज तक मैंने। आप हैं कौन वैसे?

नारद: बस ये समझ लो कि तुम्हारी सहायता के लिए प्रभु नारायण ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।

भोलाराम: मतलब मैं मरा नहीं,  मैं अभी ज़िंदा हूँ, अगर ऐसा है तो मैं तुरंत अपनी पत्नी और बच्चों के पास जाता हूँ, बेचारे मुझे ढूंढ रहे होंगे।

नारद: अरे ! कोई नहीं ढूंढ रहा है तुम्हें,  इतनी अधीरता ठीक नहीं,  यहां बैठो मैं तुम्हे सब बताता हूँ, देखो हुआ ये कि..... (भोलाराम को नारद उसके जीव के यमदूत द्वारा यमलोक ले जाते समय चकमा देकर भागने,  ग़ायब होने  और नारद द्वारा उसे पृथ्वीलोक पर ढूंढ लेने की कहानी सुनाते हैं)

भोलाराम- (दुखी होकर) इसका मतलब मैं जीवित नहीं, तो फिर ये शरीर में कैसे मैं दर्द, दुख, पीड़ा का अनुभव कर रहा हूँ।

नारद: तुम बिल्कुल सही अनुभव कर रहे हो और एक शरीर भी तुम्हारे पास है परन्तु तब भी ये तुम्हारा शरीर नहीं। यह शरीर तुम्हें अभी किसी खास प्रयोजन से दिया गया है।

भोलाराम: मैं कुछ समझा नहीं, मैं जीवित नहीं हूं परंतु शरीर मेरे पास है। और अगर शरीर मेरे पास है तो मैं जीवित कैसे नहीं हूं, यह सब क्या चक्कर है, तुम कोई जादूगर तो नहीं, मिस्टर बी॰ आर॰ नारद।

नारद: नहीं नहीं, मैं कोई जादूगर नहीं,  परंतु हाँ तुम्हारे लिए यह सब जादू ही है,  तुम पृथ्वी लोक के मनुष्य जन्म के साथ शुरू होते हो और मृत्यु के साथ समाप्त हो जाते हो, परंतु हम ब्रह्म ऋषि हैं जो तीनों लोकों में अनंत काल से विचरण करते आ रहे हैं।

भोलाराम: ये सब क्या गड़बड़झाला है मिस्टर बी॰ आर॰ नारद, बस मुझे यह बताइए।

नारद: कोई गड़बड़झाला नहीं है। शांति से बैठो, मैं तुम्हें समझाता हूं (नारद जी एक गिलास पानी देते हैं) देखो ऐसा है, तुम्हें यह शरीर जिस प्रयोजन से दिया गया है उससे तुम्हारे लिए इस लोक में बहुत कुछ बदलने वाला है।

भोलाराम: मैं अभी भी नहीं समझा। ऐसा क्या बदल जाएगा।

नारद: देखो, जो इस दुनिया में आता है उसे जाना होता है, यमलोक में कर्मों के अनुसार उसका हिसाब किया जाता है। कर्मों के हिसाब से स्वर्ग या नरक का आवंटन होता है। बेचारा यमदूत तो अपनी ड्यूटी निभा रहा था और तुम उसको चकमा देकर गायब हो गए, इससे पूरे यमलोक में उथल-पुथल मच गई। मुझे बीच बचाव करना पड़ा और तुम्हारी खोज में पृथ्वी लोक पर आना पड़ा।

भोलाराम: अरे अभी कार्य पूरे नहीं हुए तो कोई यमदूत मुझे यहां से कैसे लेकर जा सकता है, मेरी पत्नी और मेरे बच्चों का क्या होगा?  यमदूत मुझे छोड़ ही नहीं रहा था इसलिए मैंने उसको चकमा दिया और निकल भागा। परंतु मैं अपनी पेंशन की फाइल चेक ही कर रहा था कि उसी समय चपरासी ने आकर बहुत सारी दूसरी पेंशन की फाइलें रख दी और मैं दब गया।  उन फाइलों से ऊपर आते-आते मैंने देखा कि मेरी तरह सैकड़ो लोगों के पेंशन के कागज फंसे हुए थे।  मेरा मोह बढ़ता चला गया और मेरी पकड़ संसार में और ज्यादा हो गई या यूं कह लीजिए पेंशन की इन फाइलों में और ज्यादा हो गई।  अब तो मैं अपने साथ-साथ, इन सब की पेंशन भी चालू करवाना चाहता हूं। परंतु क्या करता, मैं तो अपने हाथ से एक फाइल भी खिसका नहीं पाया।

नारद: बस, यही पवित्रता, हर जीव में चाहिए।  तुम्हारे इस जज़्बे को, मैंने तुम्हारी पहली आवाज के साथ ही पहचान लिया लिया था, और तुम्हारी आत्मा क्यों नहीं उबर पाई, इसका कारण भी जान चुका हूं।

भोलाराम: इसका कारण है, इस कार्यालय के चपरासी से लेकर साहब तक व्याप्त लोलुपता।  पूरे ऑफिस में भ्रष्टाचार का मकड़ जाल। समाज की सेवा के लिए बिठाए गए इन लोगों को, भ्रष्टाचार के अजगर ने पूरी तरह जकड़ा हुआ है, और यह उससे छूटना भी नहीं चाहते। भ्रष्टाचार का माल खा खा कर यह भी अजगर की तरह मोटे होते जा रहे हैं।  जैसे-जैसे दिन बीतते जा रहे हैं, वैसे-वैसे यह अजगर मोटा होता जा रहा है, और यह अफसर कर्म-हीन लालची होते जा रहे हैं। मुझे डर है कि अब यह ऑफिस कभी इससे आजाद होगा भी या नहीं।

नारद: अगर तुम निश्चय कर लो तो सब कुछ संभव है, यह ऑफिस भी भ्रष्टाचार के इस अजगर के शिकंजे से आजाद होगा और इसका उदाहरण लेकर और ऑफिस भी।

भोलाराम: क्या यह सचमुच संभव है, मिस्टर बी. आर. नारद?

नारद:   तुम आगे तो बढ़ो... एक बार निश्चय तो करो।

भोलाराम: आप क्या कहना चाहते हैं?  सदियों से चली आ रही व्यवस्था, क्या एक झटके में बदली जा सकती है? दीवार पर चिपके हुए यह लिजलिजे जीव क्या कभी जमीन पर आकर चलने लायक हो सकते हैं। वर्षों से उगी हुई ढीठ काई क्या इतनी आसानी से हटाई जा सकती है?

नारद: शायद नहीं, परंतु असंभव भी नहीं। प्रयास तो करना चाहिए ना। कहीं भी पहुंचना है तो पहला कदम तो उठाना ही होगा।  इसलिए अगर साहस है तो तुम्हें दिए गए इस शरीर की महत्ता तुम्हें अपने सुकर्मों से सिद्ध करनी होगी।

(एक वकील का प्रवेश होता है, वकील भोलाराम की एक टांग उठा देता है। टांग को खूब कस के पकड़ लेता है और आगे की ओर धक्का देता है)

भोलाराम– ये क्या कर रहे हो?

वकील– जो ये भाईसाहब कह रहे हैं...तुम्हारा पहला कदम उठवा रहा हूँ, भाई आगे बढ़ना है तो पहला कदम तो उठाना ही पड़ेगा, कदम नहीं उठाओगे तो पहुँचोगे कैसे ? (आसमान की ओर इशारा करता है)

भोलाराम- (वकील को जोर से धक्का देकर अपनी टांग छुड़ाता है) अबे चल हट।

वकील- (गिर जाता है फिर उठकर खड़ा होकर अपने कपड़े झाड़ता हुए) कदम नहीं उठाओगे तो पहुंचोगे कैसे?

नारद– बिलकुल सही कह रहे हैं भाईसाहब (भोलाराम को देखकर) कदम नहीं उठाओगे तो पहुंचोगे कैसे। (वकील से) आप में तो मुझे नारायण दिखाई दे रहे हैं।

भोलाराम– (वकील से) अरे तुम हो कौन, आज तक तो कभी देखा नहीं।

वकील- भाईसाहब ने बताया नहीं? नारायण, मैं नारायण सिंह, सीनियर एडवोकेट, गाज़ियाबाद डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, चैम्बर नंबर 840। समझ गए।

भोलाराम– समझ गया...420 का दो गुना, आप को दूसरों के फटे में अपनी टांग फसाने की आदत है क्या? हमे किसी वकील की ज़रूरत नहीं है

वकील- नारद को देख कर... भाईसाहब इसको समझाओ....कचहरी में खड़ा है और कहता है वकील की ज़रूरत नहीं है। कचहरी में वकील के बिना कोई कम नहीं होता है जनाब। और आप हैं कि कहते हैं कि वकील की जरुरत नहीं है।

भोलाराम– हाँ, नहीं है ज़रूरत। हमारे पिताजी ने एक काले कोट के चक्कर में सब कुछ गँवा दिया। उनकी अच्छी ख़ासी डेरी चल रही थी। लेकिन काले कोट के चक्कर में सारी काली भैंसे बिक गईं। हमे तो तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखनी। शनि की दशा से तो आदमी बच भी सकता है, लेकिन जिस पर तुम्हारी दशा लग जाए उसे कोई नहीं बचा सकता।

वकील– कैसी बात करते हो, (नारद की ओर देख कर ) भाईसाहब कुछ समझाइए इसको, आप मुझे समझदार लगते हैं।

नारद– पहले आप तो मुझे समझाईए, तब तो मैं इसको समझाऊँ।

वकील– आप लोग भाईसाहब। वकील के बिना तो कहीं भी कम नहीं चलता है। आप लोग धरती पर रहते हैं, आपको क्या पता वकील के बिना तो स्वर्ग नर्क भी नहीं चलता।

नारद- मतलब आप स्वर्ग नर्क भी देख कर आए हैं।

वकील- और क्या...वकील चाहे तो क्या नहीं हो सकता। ये जब चंद्रयान-3 जा रहा था तो मैंने उस पर अपना एक टिकट कन्फ़र्म करा लिया था... अरे चंद्रलोक किसको जाना था। (आँख मारते हुए) वो तो रास्ते में जन्नत पड़ी। हाँ-हाँ जन्नत पड़ी रास्ते में। (अपनी बात पर जोर देते हुए) रास्ते में जन्नत थी, बगल में जहन्नुम था। इधर जन्नत उधर जहन्नुम, मैं तो वहीं उतर लिया।

नारद– क्या वाकई ?

भोलाराम– और फिर वापस कैसे आए? आप जन्नत की सैर कर चुके हैं

वकील– और क्या बिलकुल कर चुके हैं जन्नत की सैर। पर एक बात बता दें। जन्नत और जहन्नुम में कोई ज्यादा फर्क नहीं है। पैसा हो और समझदार वकील हो...तो सब जगह जन्नत है। (भोलाराम से मुखातिब होकर) समझ गए जनाब।

भोलाराम– समझ गया ।

वकील– क्या समझ गए ?

भोलाराम– यही कि आप एक नंबर के झूठे, गपोड़ी और मक्कार इंसान हैं।

वकील– मक्कार तो हर इंसान है, और झूठ कौन नहीं बोलता। गप्प हाँकने में तो हर इंसान को आनंद की  अनुभूति होती है।

नारद– सो तो है।

वकील– देखिये आप बड़े पॉज़िटिव लग रहे हैं मुझे, थोड़ा एक्सपेंसिव है, लेकिन कभी स्वर्ग में बसने का इरादा बनता हो तो बताना मुझे।

भोलाराम– और हमारे बीवी बच्चों का क्या होगा, स्वर्ग में बस जाएंगे तो।

वकील– अफ्फोर्ड कर सकते हो तो उन्हे भी स्वर्ग में बसा देंगे ।

भोलाराम– क्या यार इसके चक्कर में पड़े हैं। पहले की समस्याएँ तो खत्म नहीं हो रहीं, एक आफत और मोल ले लें।

वकील– क्या समस्या है आपकी?

भोलाराम– हमें ना बतानी।

वकील– बताओगे नहीं तो हल कैसे होगी।

भोलाराम– तुम्हें ना बतानी......

नारद– (वकील से) क्या बताएं ...बेचारा पेंशन कि फाइलों में अटका पड़ा है...सालों पहले रिटाइर हो गया था पर पेंशन ना बंधी आज तक बेचारे की।

वकील– वज़न नहीं रखा होगा एप्लीकेशन पर।

नारद– (वकील के दोनों हाथ पकड़ते हुये ) अरे वाह, आप तो समस्या की जड़ तक पहुँच गए। इसने वजन नहीं रखा तो पेंशन की एप्लीकेशन उड़ गई, और ये अटक गया।

भोलाराम– और ऐसे ही अटका रह जाऊंगा, मुझे मुक्ति नहीं.....

वकील– अरे ये भी कोई समस्या है...ये तो बाएँ हाथ का खेल है मेरे लिए। इन लोगों को तो मैं सही करता हूँ। (एक कागज़ निकाल कर) लो इस वकालतनामे पर साइन करो और आ जाओ हमारे पीछे।

भोलाराम- (कागज़ साइन करके वकील को थमा देता है ) चलिये, कर दिये साइन, दिलाईए पेंशन।

नारद– हाँ भाई, चलो-चलो।

वकील– क्या भाई चलो-चलो, तुम तो मुझे समझदार लग रहे थे। (भोलाराम से मुखातिब होकर) अरे जब तक फीस रूपी ईंधन वकील रूपी गाड़ी में नहीं डालोगे तब तक मुक़द्दमा रूपी मुसाफिर फैसला रूपी मंज़िल तक कैसे पहुंचेगा?

भोलाराम– फिर वही समस्या? अरे भाई अगर कुछ देने को होता तो मेरी पेंशन की एप्लीकेशन उड़ती ही क्यों? बाबू के सामने ही उस पर वजन रख देता।

वकील– (स्वगत) ये तो बड़ी कैढ़ी समस्या है, हफ्ते भर में पहला ग्राहक फँसता हुआ लग रहा है पर वो भी कड़का निकला। क्या करूँ, क्या करूँ...... कुछ करता हूँ।

नारद– अरे कहाँ खो गए भाई... क्या बड़बड़ा रहे हो... चलिये भोलाराम को उसकी पेंशन दिलवाते हैं

वकील- चलिये भोलाराम को उसकी पेंशन दिलवाते हैं, जेब में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने।

नारद– मतलब ?

वकील– मतलब मैं कुछ करता हूँ। ( भोलाराम से मुखातिब हो कर ) वैसे अगर पेंशन बंध गयी तो कितनी मिलेगी ?

भोलाराम– यही कोई 25-26 हज़ार।

वकील– (कुछ सोचकर) तब तो अच्छा खासा एरियर भी मिलेगा।

भोलाराम– एरियर भी मिलना तो चाहिए।

वकील– बस, काम बन गया। (बैग से एक कागज़ निकालकर भोलाराम के सामने करता है) लो एक हस्ताक्षर और करो।

भोलाराम– ये क्या है?

वकील– हुंडी, हुंडी समझते हो? ये समझ लो कि मैं तुम्हें उधार दे रहा हूँ। अरे आप लोग नहीं समझोगे। इस हुंडी का मतलब ये है कि मैं आपका मुक़द्दमा आज लड़ता हूँ...फीस मुझे बाद में दे देना।  बी०एन०पी०एल०,  माने  बाय नाउ पे लेटर।

नारद– बड़ा कॉंफिडेंट वकील है (भोलाराम से ) भोलाराम, तुम तो मुक़द्दमा जीत गए समझो।

वकील- (भोलाराम से) चलो मेरे साथ। (वकील और भोलाराम मंच से परे चले जाते हैं और मँच पर सिर्फ नारद जी रह जाते हैं)

नारद– (मोबाइल से फोन मिला कर) हैलो ! चित्रगुप्त जी, समस्या का निराकरण होता प्रतीत हो रहा है। कोई नारायण सिंह नाम के देवदूत हैं जो भोलाराम के जीव को अवश्य ही पेंशन की फाइल से बाहर करवा देंगे और आपकी बैलेन्स शीट बराबर हो जाएगी। क्या कहा, अरे नहीं-नहीं 56J नहीं लग पाएगी, उस से पहले ये जीव यमलोक पहुँच चुका होगा, हाँ हाँ सख्ती है, मालूम है पर ये तो यमदूत से केवल ओवरसाइट हुआ है, कोई कनाइवेन्स थोड़ी है। उसकी बेचारे की कोई गलती नहीं। जिसको उस यमदूत पर यकीन ना आ रहा हो उसे धरती पर भेज दीजिये। यहाँ की समस्या देख कर और इंसानों को देख कर खुद ही समझ जाएगा कि धरती से जीव ले जाना कितना कठिन कार्य होता है।

(वकील का गुस्से से भरे हुये, बड़बड़ाते हुये तेजी से मंच पर प्रवेश होता है, भोलाराम उसके पीछे-पीछे चला आ रहा है। नारद जी अपना फोन काट देते हैं)

वकील– (गुस्से से भरकर) समझ  क्या रखा है इन लोगों ने, जनता की सेवा के लिए हैं और सेवा की जगह मेवा खा रहे हैं, अरे भाई इतना तो होश रखो कि कहाँ मेवा मिलेगी और कहाँ नहीं मिल सकती……. इनकी अकड़ देखिये... सेटलमेंट को भी तैयार नहीं। अब तो इनको छठी का दूध याद दिलाता हूँ। (एक कागज़ भोलाराम की ओर करके) लो, इस पर साइन करो ।

नारद- (पास आकर) ये क्या है अब ?

वकील- ये एक नई स्कीम लॉंच हुई है भारत सरकार की, उसके तहत प्रार्थना पत्र है ।

नारद- ये क्या योजना है ?

वकील- इन सबकी शिकायत करना है, इन पर इतना वजन आ जाएगा कि हल्का होना भूल जाएँगे।

नारद- जरा ठीक से समझाइए ।

वकील – (भोलाराम से ) अरे इधर आओ, अपनी पेंशन चाहिए या नहीं ।

भोलाराम- चाहिए, मगर मुझे डर भी लग रहा है ।

वकील – कैसा डर?

भोलाराम- कहीं शिकायत का उन लोगों को पता चल गया तो?

वकील- उनके बाप को भी पता नहीं चलेगा।

नारद- (भोलाराम से) शांत हो जाओ भोलाराम, भाई साब कुछ कह रहे हैं तो एकबार सुन तो लो उनकी।

वकील- मेरे भाई, जनहित प्रकटीकरण और मुखबिर संरक्षण संकल्प। पिड्पी अर्थात हिंदी में बोलें तो पब्लिक इंटरेस्ट डिस्क्लोजर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ इनफॉर्मर। बहुत गजब का टूल है।

नारद- जी बताएं इसके बारे में, इतना बड़ा तो नाम है।

वकील- नाम बड़ा है तो काम भी तो बड़ा हो रहा है..... इसमें शिकायत सीधे सचिव, सी०वी०सी० को संबोधित होती है.......... इतना गोपनीय रखा जाता है कि शिकायत करने वाले के  नाम-पता लिखे लिफाफे को भी दूसरे लिफाफे में बंद करके रखा जाता है।

भोलाराम- रहने दो, आरटीआई या सीपीग्राम तो डालते ही दूसरी पार्टी को पता चल जाता है

वकील- इसीलिए तो, शिकायत खुली अवस्था में नहीं रखी जाती है......... व्यक्तिगत शिकायतों से पहचान उजागर होने का खतरा रहता है..... इसीलिए सार्वजनिक पोर्टल पर भी नहीं डालते हैं ये शिकायतें। और तो और, अगर शिकायत में आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना के कागज हैं तो उन्हें भी नहीं बताना है। इनसे भी पहचान उजागर हो सकती है।

नारद– अच्छा, तो एक काम और भी तो कर सकते हैं, शिकायत करते समय उसके नीचे हम अपना नाम ही नहीं डालेंगे।

वकील– ऐसा नहीं कर सकते, शिकायत करने वाले की पुष्टि के लिए अंदर वाले लिफाफे में नाम पता होना बहुत ज़रूरी है ।

भोलाराम– ना हो पुष्टि… उस शिकायत पर कार्यवाही तो हो ही जाएगी।

वकील– अरे मेरे भोलाराम, पुष्टि नहीं होने का मतलब समझते हो?

भोलाराम– पुष्टि नहीं होने का मतलब.... वो आदमी नहीं मिला जिसने शिकायत की थी। पर शिकायत की जांच तो होगी।

वकील– नहीं होगी। जिन शिकायतों कि पुष्टि नहीं होगी, उन्हे बंद कर दिया जाएगा। गुमनाम और छद्म नाम के पत्रों पर कोई विचार नहीं होगा। (एक कागज़ को फाड़ते हुए) ऐसे फाड़ेंगे और कूड़े में डाल देंगे।

नारद– चलो मान लो शिकायत दर्ज कर ली गयी लेकिन वज़न वाले अफसर तक ही पहुँच गयी तो?

वकील– भाईसाहब, लगता है कि आप भी भोलाराम ही हैं। भाई ऐसा किसी सूरत में नहीं होगा।

नारद– शिकायत को ले कर बैठ गए और कोई एक्शन नहीं लिया गया तो?

वकील– तो एक्शन का रिएक्शन होगा, और उन सबके लिए तैयार एक इंजेक्शन होगा। ऐसा इंजेक्शन होगा कि दोबारा बीमार होने की हिम्मत नहीं कर पायेंगे। अरे भाई साहब,  सब कुछ टाइम बाउंड है और सी०वी०सी० पूरी नज़र रखे रहेगा।

नारद– तब ठीक है नहीं तो एक महीने में तो इसका ये शरीर ग़ायब हो जाएगा ।

वकील- क्या मतलब?

नारद– हम बता देंगे तो विश्वास नहीं करोगे, तो इसलिए मत पूछो।

भोलाराम– मतलब मेरे पास सिर्फ एक महीने का समय है ?

वकील– अरे एक महीना तो बहुत होता है। क्यों आप लोग फ़ालतू बहस कर रहे हो? जल्दी करा देंगे, मजिस्ट्रेट से पक्की ट्यूनिंग है हमारी। और फिर हमें भी तो अपनी फीस मतलब, लोन वसूलना है तुमसे।

नारद– (वकील से) एक महीने में पेंशन चालू करा देना... नहीं तो लोन वसूलने के लिए अलोन रह जाओगे।

वकील– (गुस्से में) अबे, तुम लोग क्या मेरी फीस पीने के चक्कर में हो? एक बात जान लो कि वकील की फीस हड़पना सबसे बड़ा पाप होता है। अपनी फीस के लिए तो मैं यमलोक तक आ जाऊंगा तुम्हारे पीछे-पीछे, और ध्यान रखना.... हुंडी पे साइन करके दे चुके हो।

भोलाराम– चलिये वकील साहब जल्दी करिए, मुझे अपने परिवार से भी मिलना है।

(भोलाराम और वकील कागज़ पढ़ते हुये स्टेज से परे निकाल जाते हैं। नारद जी फिर से फोन पर नंबर मिलाने लगते हैं )

नारद– हाँ... चित्रगुप्त जी... नमस्कार.. एक अच्छा समाचार देना था।  समझ लीजिये कि आपकी चिंता ज़ीरो हो गयी, सब कुछ सेट हो गया है। बस भोलाराम की पेंशन मिलते ही उसका जीव आप लोग ले जा सकते हैं। नहीं-नहीं अभी नहीं... अभी तो मैंने उसको यमलोक जाने से स्टे दे रखा है। पर एक सलाह है, चाइना मेड ट्रैकिंग डिवाइस हटवा दीजिये, इण्डिया याने भारत का माल प्रयोग करिए, मेक इन इण्डिया। अच्छा रखता हूँ फोन... एक मिनट, एक मिनट... ये जो नारायण सिंह है धरती पर...  इसको जानते हैं आप....? नहीं ... बस ऐसे ही पूछ लिया। (फोन कट कर दर्शकों की ओर उन्मुख होते हैं) ( फ्रीज़ हो जाते हैं )

सूत्रधार– तो कुछ दिनो में ही भोलाराम की शिकायत पर गंभीरता से, विचार करने के कारण, बेचारे की पेंशन शुरू हो गई और वज़न रखवाने वालों का वज़न अब बहुत कम है ... नारद जी को भी अपनी वीणा और करताल वापस मिल गए। यमलोक में सस्पैंड किया गया यमदूत भोलाराम के जीव को लेकर यमलोक में जमा करता है। यमदूत का सस्पेंशन ख़त्म हो जाता है । यमलोक की बैलेंस शीट, बैलेन्स हो जाती है । और आज का प्रसंग समाप्त हो जाता है।

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "

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रचनाएँ
हरिशंकर की परछाईं
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हास्य-व्यंग्य की रोचक यात्रा नाटक विधा के रूप में ....... आशान्वित हूँ कि आपको पसंद आएगा
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नाटक: भोलाराम का जीव

11 अक्टूबर 2023
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[मैंने परम  श्रद्धेय स्वर्गीय श्री हरिशंकर परसाईं के जन्म शती वर्ष में उनको श्रद्धांजलि स्वरुप उनकी कहानी भोलाराम का जीव पर ये नाटक लिखा है] (एक व्यक्ति मेज पर रखी डायरी पर कुछ लिख रहा है) सूत्रधा

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भोलाराम का जीव 2.0

4 नवम्बर 2023
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सूत्रधार- प्रख्यात व्यंगकार श्रद्धेय श्री हरिशंकर परसाई जी की कृति भोलाराम का जीव तो आपने पढ़ा ही होगा । अगर नहीं पढ़ा तो इसी ऑफिस में हुआ नाट्यमंचन तो याद होगा। चलिये कोई बात नहीं हम संक्षिप्त में ब

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मियाँ का जिन्न

7 दिसम्बर 2023
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अनवर मियाँ को भरोसा था कि एक न एक दिन उन्हें अलादीन का चिराग जरुर हासिल होगा। अपने भरोसे पर कायम अनवर मियाँ जिन्नों की बस्ती ढूँढ-ढूँढ कर थक चुके थे। ऐसा कोई कबाड़ का बाज़ार नहीं था जो उन्होंने इस चक्कर

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