*!! ॐ नमश्चण्डिकायै !!*
*नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:*
*प्रकृत्यै भद्रायै नियत: प्रणत: स्मताम् !!*
*इस सृष्टि में नारी की महत्ता को प्रत्येक ग्रन्थ में दर्शाया गया है | विराट पुरुष ने आदिकाल में ही प्रकृति के रूप में नारी का सृजन किया ! बिना प्रकृति के पुरुष भी अधूरा था ! ब्रह्म ने माया को रचा माया जो कि ब्रह्म की प्रतिबिम्ब है :--*
*तन्मायाफलरूपेण केवलं निर्विकल्पितं !*
*वांग्मनो$गोचरं सत्यं द्विधा समभवद् बृहत् !!*
*तयोरेकतरो ह्यर्थ: प्रकृति: सोभयात्मिका !*
*ज्ञानं त्वन्यतमो भाव: पुरुष: सो$भिधीयते !!*
*-: श्रीमद्भागवत :-*
*अर्थात् :- इसमें कोई संदेह नही कि ब्रह्म में किसी प्रकार का विकल्प नहीं है वह केवल अद्वितीय सत्य है | मन और वाणी की उसमें गति नहीं है | वह ब्रह्म ही माया और उसमें प्रतिबिंबित जीव के रूप में दृश्य और दृष्टा के रूप में दो भागों में विभक्त सा हो गया है | उनमें से एक वस्तु को प्रकृति कहते हैं ! उसी ने जगत में कार्य और कारण का रूप धारण किया दूसरी वस्तु को , जो ज्ञान स्वरूप है पुरुष कहते हैं !*
*कहने का तात्पर्य है प्रकृति अर्थात नारी सृष्टि के आदिकाल से ही इस सृष्टि का आधार बन कर के आई जोकि ब्रह्म का दूसरा स्वरूप अर्थात उनका प्रतिबिंब ही है महामाया भगवती स्वयं देवताओं को बताते हुए कहा है:--*
*अहं ब्रह्मस्वरूपिणी ! मत्त: प्रकृतिपुरुषात्मकं जगत् ! शून्यं चाशून्यं च !!*
*-: श्रीदेव्यथर्वशीर्षम् :-*
*अर्थात्:- भगवती करती है मैं ही ब्रह्म स्वरूप हूं मुझसे ही प्रकृति पुरुष आत्मक शब्द रूप और असद रुप जगत उत्पन्न हुआ है ! पराअंबा , जगदंबा , जगतजननी , आदिशक्ति भगवती महामाया को इस सृष्टि का मूल कहा जाता है नारी जाति को ब्राह्मणी कहा गया है सृष्टि के प्रथम वेद ऋग्वेद में वर्णन मिलता है :--*
*"स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ"*
*-: ऋग्वेद :-*
*नारी ब्राम्हण या ब्रह्म ही है ! ब्रह्म क्या है ? इसके विषय में ऊपर बताया गया है कि ब्रह्म ज्ञान स्वरूप है | ज्ञान का अधिष्ठाता है | यज्ञ करने का विधान ब्रह्म ही जानता है इसीलिए ब्रह्म को सर्वोच्च सत्ता कहा जाता है | उसी प्रकार नारी चाहे परम विद्वान हो चाहे अनपढ़ हो वह अपनी संतान के लिए ज्ञान स्वरूप ब्रह्म ही होती है | संतान की प्राथमिक शिक्षा नारी के मुखारविंद से ही प्रस्फुटित होती है | ज्ञान - विज्ञान के साथ - साथ अपनी संतान को प्राथमिक ज्ञान देने के कारण ही नारी को ब्रह्म कहा गया है | हमारे वेदों में नारी का बड़ा गौरवमयी स्थान है | बिना नारी के नर की संकल्पना नहीं की जा सकती | समाज में रहने के लिए घर की आवश्यकता होती है हमारे वेदों में नारी को ही घर कहा गया है | यथा :-*
*"जायेदस्तं मधवन्त्सेदु योनि स्तदित्वा युक्ता हरयो वदन्ति"*
*-: ऋग्वेद :-*
*अर्थात्:- घर घर नहीं है अपितु गृहणी ही गृह है | एक गृहणी से ही गृह का अस्तित्व है | इसी तथ्य को आगे बढ़ाते हुए कहा गया है :--*
*वद नारी विना को$न्यो निर्माता मनुसन्तते !*
*महत्त्व रचनाशक्ते: स्वस्या नार्या हि ज्ञायताम् !!*
*अर्थात्:- मनुष्य की निर्मात्री जन्म रात्रि नारी ही है संपूर्ण संसार के साथ-साथ नारी को भी अपनी शक्ति का महत्व समझना चाहिए नारी से ही मनुष्य उत्पन्न होता है | देवताओं ने महामाया की स्तुति करते हुए स्पष्ट किया है :--*
*त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या ,*
*विश्वस्य बीजम् परमासि माया !*
*सम्मोहितं देवि समस्तमेतत् ,*
*त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु: !!*
*-: दुर्गासप्तशती :-*
*अर्थात् :- हे भगवती , तुम अनंत बल संपन्न वैष्णवी शक्ति हो ! इस विश्व की कारणभूता अर्थात विश्व का बीज तुम्ही परा माया हो | हे देवी ! तुमने इस समस्त जगत को मोहित कर रखा है | तुम्ही प्रसन्न होने पर इस पृथ्वी पर मोक्ष की प्राप्ति कराती हो |*
*क्रमश:---*