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अटक से गए है कुछ लफ़्ज़ तुम्हारे हलक से निकले दिल ने अबतक जो कि सुन न पाया इन्हें ठहरनें देना अपने सुर्ख लबों पर इन्हें कभी न करना विरामाधीन तुम्हारे हर्फ़ लिपटें हुए ख़ामोशी में