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निजीकरण पर आपके विचार

8 नवम्बर 2022

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            निजीकरण आर्थिक सुधार का एक विश्वव्यापी कार्यक्रम बन गया है| यह कार्यक्रम यूरोप, अमेरिका और जापान तक ही सीमित नहीं है, बल्कि साम्यवाद का परित्याग कर प्रजातांत्रिक पद्धति अपनाने वाले देशों, साम्यवादी देशों और विकासशील देशों में भी अपनाया जा रहा है| विलंब से ही सही किंतु भारत में भी निजी करण के सिद्धांत को अपनाया है| राजनीतिक विरोध और वैचारिक मतभेदों के कारण निजी करण की गति धीमी है लेकिन इस कार्यक्रम को तेजी से लागू करने के प्रयास चल रहे हैं| यह प्रयास 1991 में प्रारंभ हुआ जब परंपरागत औद्योगिक एवं आर्थिक नीति को छोड़कर उदारीकरण और निजीकरण पर आधारित नई आर्थिक नीति को अपनाया गया|
                     भारत में 1991 की नई आर्थिक नीति के साथ ही उदारीकरण और निजीकरण का शंखनाद हुआ| अब भारत में इस बात पर सर्व अनुमति है कि सरकार को व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से दूर रहना चाहिए इसके दो प्रमुख कार्य है एक तो यह कि सरकार के पास संसाधनों की कमी है और दूसरे यह कि सार्वजनिक क्षेत्र के कई प्रतिष्ठान और कुशल है और घाटे पर चल रहे हैं| सार्वजनिक क्षेत्र के संबंध में सरकारी नीति के निम्नलिखित प्रमुख तत्व है-
1. गैर सामरिक सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी भागीदारी को घटाकर 26% या इससे भी कम कर दिया जाए|
2. जिन सार्वजनिक उपक्रमों में सुधार की संभावनाएं हो उनका पुनर्गठन करके उन्हें जीवंत बनाया जाए|
3. जीन सार्वजनिक उपक्रमों को जीवंत बनाने की संभावना नहीं हो उन्हें बंद कर दिया जाए|
4. उपर्युक्त कार्यक्रमों को लागू करते समय कामगारों के हितों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाए|
                     भारत में विनिवेश ही निजी करण का मुख्य आधार रहा है| विनिवेश के माध्यम से सार्वजनिक उपक्रमों के अवशेष स्वदेशी या विदेशी निजी निवेशकों के हाथ बेचे जाते हैं| वर्ष 1991- 92 या 2001- 2002 तक कुल मिलाकर 65,300 करोड रुपए विनिवेश के माध्यम से अर्जित करने का लक्ष्य रखा गया, जबकि सिर्फ 19,435 करोड रुपए (अक्टूबर 2001 तक) वास्तव में प्राप्त किए जा सके| दूसरे शब्दों में मात्र 29.76% लक्ष्य ही पूरा किया जा सका|
                भारत में निजी करण का कार्यक्रम विनिवेश तक ही सीमित नहीं है| औद्योगिक एवं व्यवसायिक लाइसेंस की नीति, विदेशी विनिमय की नीति, आयात निर्यात की नीति, तथा कर नीति को उदार बनाकर निजी क्षेत्र के निवेशकों को प्रोत्साहित किया जा रहा है| अब निजी क्षेत्र के किसी प्रतिष्ठान के राष्ट्रीयकरण की बात नहीं हो रही है| रेल और सुरक्षा क्षेत्र को छोड़कर अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों के अंश निजी निवेशकों के हाथ बेचे जा रहे हैं या उन पर विचार किया जा रहा है| कई क्षेत्र शत-प्रतिशत निवेश के साथ विदेशी निवेशकों के लिए खोल दिए गए हैं भारतीय निवेशकों के साथ मिलकर अन्य क्षेत्रों में विदेशी निवेशकों की भागीदारी में उत्तरोत्तर वृद्धि की जा रही है| निवेशक काफी संख्या में युक्त उपक्रम स्थापित कर रहे हैं| सरकारी क्षेत्र में कोई नया औद्योगिक या व्यवसाय उपक्रम स्थापित नहीं किया जा रहा है और जो उद्योग एवं व्यवसाय क्षेत्र के लिए आरक्षित थे, उनमें से कई अनारक्षित कर दिए गए हैं और निजी क्षेत्र को प्रवेश की अनुमति प्रदान कर दी गई है| बीमा और बैंकिंग व्यवसाय के द्वार भी निजी क्षेत्र के लिए खोल दिए गए हैं| विगत कई वर्षों से ऐसा लगने लगा है कि केंद्र सरकार अपने राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए निजी करण की प्रक्रिया को तेजी प्रदान करने के प्रयास कर रही थी|
                 निजीकरण का उद्देश्य केवल उत्पादकता और लाभदायक था में सुधार करने तक ही सीमित नहीं है| इन उद्देश्यों की पूर्ति से तो केवल उनसे धारिया निवेशक लाभान्वित होंगे निजीकरण का लाभ उपभोक्ताओं को भी प्राप्त होना चाहिए| यह तभी संभव है जब उन्हें उच्च स्तर की वस्तु और सेवा कम कीमत पर उपलब्ध हो| अपेक्षाकृत गरीब उपभोक्ताओं के लिए विभेद आत्मक न्यूनर कीमत की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि उपभोक्तावाद की वर्तमान संस्कृति में वह भी अपने रहन-सहन के स्तर को यथासंभव नया आयाम दे सके| निजीकरण के कार्यक्रम न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप विनियमन और उदारीकरण के वातावरण में चलाए जाते हैं| अर्थव्यवस्था बाजारोन्मुखी और प्रतीक प्रतिस्पर्धात्मक हो जाती है और इसका स्वाभाविक लाभ उपभोक्ताओं को प्राप्त होता है| फिर भी बाजार तक अल्प आय वर्ग के उपभोक्ताओं की पहुंच कठिन होती है| मांग के आधार को विस्तारित करने के लिए भी यह आवश्यक है कि उच्च एवं मध्य आय वर्ग के उपभोक्ताओं के साथ-साथ निम्न आय वर्ग के उपभोक्ताओं के लिए भी अधिक से अधिक वस्तु एवं सेवा सुलभ हो, निजीकरण के दौड़ में विदेशी पूंजी और प्रौद्योगिकी का आगमन होता है और उत्पादन प्रणाली में श्रमिकों का महत्व क्रमशः घटने लगता है, क्योंकि पूंजी प्रधान तकनीकों से उत्पादन में वृद्धि करने की लागत अपेक्षाकृत कम होती है| उन्नत उपकरणों के प्रयोग कारण नियोजित श्रमिकों की उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है, लेकिन रोजगार के नए अवसरों का सृजन नहीं हो पाता है| अर्थात जिस अनुपात से उत्पादन में वृद्धि होती है, उस अनुपात से रोजगार में वृद्धि नहीं होती है| लेकिन यह ध्यान देने की बात है कि संगठित क्षेत्रों और बड़े पैमाने के उद्योगों में भले ही रोजगार के कम अवसर उत्पन्न ना हो, निजी करण के वातावरण में उद्यम शील प्रशिक्षित युवाओं के लिए रोजगार की अपार संभावनाएं हो जाती है| जो भी हो, निजी करण के फलस्वरूप विस्थापित कामगारों को वैकल्पिक रोजगार मुहैया कराने अथवा पर्याप्त क्षतिपूर्ति उपलब्ध कराने के लिए सरकार को कारगर कदम उठाना चाहिए|

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