निजीकरण पर आपके विचार की जानकारी|
निजीकरण अर्थात स्वयं का..., वैसे तो सरकारी तौर पर देखा जाए तो मानव का अपनी वस्तु पर अधिकार होता है जिसका वह जब चाहे अपनी इच्छानुसार प्रयोग कर सकता है रहा सवाल कंपनिया बड़े बड़े कारखाने उन पर काम कर
सबसे पहले तो देश में कोई भी परिवर्तन लाया जावे या उस पर अम्ल किया जावे तो सबसे पहले तो उस पर राजनीति नही होनी चाहिये अगर किसी भी योजना या परिवर्तन पर नेता राजनीति करेंगे तो वह योजना या परिवर्तन भले ही
मुमकिन नहीं सभी व्यापार अकेले चला पाए बस सरकार,जहां तक मुमकिन रहे सरकार बाकी सारा दे औरों के हाथ।।
निजीकरण~एक घटित हुई सच्ची कहानी स्मरण हो आती है गांव के उस सबसे बड़े परिवार की जिसकी धनाढ्यता बहुत विख्यात थी । फिर ऐसा हुआ कि संसाधनों की अतिशयता ने उस बड़े संयुक्त परिवार के लोगों को निठल्ला बना
सरकारी उपक्रमों, सरकारी नौकरियों और सरकारी व्यवसाय को जो पूर्ण रूप से सरकारी या सार्वजनिक सेवा के तहत काम कर रहे हो किसी निजी कंपनी या निजी संगठन के हाथों में सौपना ही निजीकरण है।हालांकि निजीकरण के अच