नृपन्ह केरि आसा निसि नासी । बचन नखत अवलीन प्रकासी ॥
मानी महिप कुमुद सकुचाने। कपटी भूप उलूक लुकाने ॥
भए बिसोक कोक मुनि देवा। बरसहिं सुमन जनावहिं सेवा ॥
गुर पद बंदि सहित अनुरागा। राम मुनिन्ह सन आयसु मागा॥
सहजहिं चले सकल जग स्वामी । मत्त मंजु बर कुंजर गामी ॥
चलत राम सब पुर नर नारी । पुलक पूरि तन भए सुखारी ॥
बंदि पितर सुर सुकृत सँभारे । जौं कछु पुन्य प्रभाउ हमारे ॥
तौं सिवधनु मृनाल की नाईं। तोरहुँ रामु गनेस गोसाईं ॥
संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में "धनुष - भंग" शीर्षक से उद्धृत है , जो कि "श्रीरामचरितमानस" नामक ग्रंथ के "बालकाण्ड" से लिया गया है। जिसके रचयिता "गोस्वामी तुलसीदास" जी हैं।
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धनुष भंग की व्याख्या / Class 10
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