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तुलसीदास

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नृपन्ह केरि आसा निसि नासी । बचन नखत अवलीन प्रकासी ॥ मानी महिप कुमुद सकुचाने। कपटी भूप उलूक लुकाने ॥ भए बिसोक कोक मुनि देवा। बरसहिं सुमन जनावहिं सेवा ॥ गुर पद बंदि सहित अनुरागा। राम मुनिन्ह सन आयसु

वेद,पुराण,उपनिषद जैसे सब ग्रंथों का सार। शिव-मानस सदा रहा है,इनका शुभ आगार।।जगद्गुरु ने उसी तत्व का,लेकर फिर आधार। रचा राम का निर्मल विस्तृत चरित अपार।।शिवशंकर के वरद हस्त का पाकर आशीर्वाद। किया श्रवण "तुलसी" ने उर में रामकथा संवाद।।भाव समाधि में किया फिर,झूम-झूम कर गान। रामचरितमानस से उपजा,जन-जन का

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