shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

परम शिवभक्त रावण

वरुण शुक्ला

10 अध्याय
52 लोगों ने खरीदा
15 पाठक
31 अक्टूबर 2022 को पूर्ण की गई
ISBN : 978-93-94582-73-6
ये पुस्तक यहां भी उपलब्ध है Amazon Flipkart

संसार ने रावण को एक दैत्य के रूप में तो जाना है,पर इस पुस्तक के द्वारा परम शिवभक्त,परम पांडित्य ज्ञाता ,लंकेश ,रावण को एक भिन्न दृष्टि से देखकर अपनी बुद्धि अनुसार लिखने का प्रयास किया हैं। जय श्री राम ॐ नमः शिवाय  

param shivbhakt ravan

0.0(1)


एक छोटी सी उम्र में लेखक वरुण ने अपनी प्रतिभा का बेहतरीन प्रदर्शन किया है । रावण के प्रति लोगो के मन में एक नकरतम सोच स्थित हो गई है उस विषय पर लोगो का ध्यान आकर्षित करने का ये बेहतरीन प्रयास है ।बेहद अच्छा प्रयास किया है वरुण ने आप सभी को एक बार अवश्य ये किताब पढ़ना चाहिए।

वरुण शुक्ला की अन्य किताबें

पुस्तक के भाग

1

प्रथम सर्ग

21 अक्टूबर 2022
6
0
0

हे प्रभु - सर्वेश हे महाकाल हे आशुतोष हे भोलेनाथहे जगपालक हे अंतर्यामी हे नीलकंठ हे विश्वनाथ इक्षा हैं, आशीषआपके कर कमलों कीमांगता हूं भीक्षा मेंधूरी तव कोमल चरणों की वर दीज

2

द्वितीय सर्ग

22 अक्टूबर 2022
2
0
0

आश्रम की कुटिया मेंएक मुनि थे रहतेनित्य उसी आश्रम मेंनिज जीवन व्यापन करतेकिंतु, ऋषि का एक ,गूढ़रहस्य बहुत पुराना हैवह मुनि था छलिया,आश्रमतो कुछ वर्षो से ही ठिकाना है वास्तविकता में,वह तपस्वी नहीं

3

तृतीय सर्ग

26 अक्टूबर 2022
0
0
0

तब बोला कपटी राजा ,' आशा है ,तेरे संशय सब दूर भए तेरे भीतर शंका के सारे प्रासाद चकनाचूर भए हे प्रतापभानु हुआ प्रसन्न, मैं तेरे व्यवहार से हृदय आनंदित हुआ मेरा तेरे मन के

4

चतुर्थ सर्ग

27 अक्टूबर 2022
1
0
0

अपराह्न मुहूर्त में, प्रताप -भानु ने निद्रा त्यागी रात्रि के थकावट उपरांत अब थोड़ी आंखें जागी प्रताप भानु ने अपने तन को जब महल में पाया क्षणभर उनके चित्त में आश्चर्य

5

पंचम सर्ग

27 अक्टूबर 2022
1
0
0

योग्य स्थान तप हेतु ,तीनों ने पाया जा वन में वरदान पाने की उत्सुकता कूद रही उनके तन में रावण व उसके दोनों भाई ,घनघोर तपस्या करने लगे एक टांग पर स्थिर होकर ईश्वर के मंत्र जपने

6

षष्ठ सर्ग

29 अक्टूबर 2022
0
0
0

त्रिकूट पर्वत पर ,विधाता ने एक प्रासाद रचायासंपूर्ण जगती पर, वह स्थान' लंका ' था कहलायाउस विकराल भू अंश का सिंधु ही पहरेदार थाऔर आगे से उस भूमि का गिरि ही चौकीदार थाऐसा ना कोई हुआ,जोउस

7

सप्तम सर्ग

29 अक्टूबर 2022
0
0
0

जब लंकेश को लगा कि क्षण - क्षण निकट नगरी लंका आती तब मायाधीश की माया से रावण को लग लघुशंका जाती जिस परम प्रतापी पंडित से सकल प्राणी अकुलाते थे माया के कारण , रावण&nb

8

अष्टम सर्ग

30 अक्टूबर 2022
0
0
0

लंकेश को भड़का हुआ जानशूर्पनखा तब बोली ,' भाई आवेश में आ बैठे हैं 'यह विचारकर उनमन में डोली कहती भाई , ' मैं तो यूं ही प्रातः वेला में विचरण कर रही थी पंचवटी के ऊपर से उड़कर मैं तो

9

नवम सर्ग

30 अक्टूबर 2022
1
0
0

कुंभकरण तब कहता है ' भाई कैसी बात करते हो ?निज अनुज को तुम हार जाने की बात क्यों कहते हो ?भले ही विभीषण ने तुम्हें तजा मैं तुम्हें नहीं तज सकता हूं अपने भैया को छोड़कर मैं किस

10

दशम सर्ग

31 अक्टूबर 2022
1
0
0

मुर्गे ने आवाज दी ,नई प्रातः की शुरुआत भई लंकेश के जीवन की ,वह शेष अंतिम भी रात गई नित्य कर्म से शुद्ध भवापूजा - घर में चला जाता है मंदिर में पहुंच निज इष्ट - देव महादेव

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए