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Part 2

27 मई 2022

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एक रात पहले मेरी माता जी अम्माने कहा -----कल बच्चो को स्कुल  नही भेजना ,कल मै दिन के 2बजे चली जाऊगी।
हम अम्मा  के पास  ही देखभाल  मे लग गये।
और  अगले दिन की दोपहर  को 2बजे सभी के सामने अम्मा  के प्राण  पखेरू उड गये।
हम सभी जब भी इस घटना को याद करते, अपने बच्चो  को बताते है तो हमारे रोम-रोम मे प्रभू का विश्वास  व भक्ति जाग जाती है।
( जाकी रही भावना जैसी ,प्रभू  मूरत  देखी तिन्ह जैसी )
हमने जब से होश सम्हाल हमने अपनी अम्मा  को हमेशा ही भक्ति  भाव  मे देखा ।हर पूर्णिमा  को अपनी सखीयो  के साथ गिरिराज  जी की परिक्रमा  के लिए  सभी इकट्ठी  होकर  जाती , हमारी अम्मा
 राजस्थानी राज पुरोहित के घराने की बेटी होने के कारण काफी गहने आदि ,उनके पास थे। वह हमेशा बनठन कर रहती थी ।
एक बार  जब वह गिरिराज  जी की परिक्रमा  के लिए गयी ,तो पहले के समय मे रात मे परिक्रमा  मार्ग  मे काफी अंधेरा होता था ,और घोर जंगल था ।तो उनके सभी सखीयो को डर लगने लगा ,की हम सब अंधेरे मे परिक्रमा  नही करेगे। 
अपने साथ  हमे भी मरवायेगी, कोई  रास्ते मे चोर डाकू मिल गया तो, हमारे सभी गहने ले लेगे, और पता नही जान भी से भी मार दे तो हमारे बच्चो का क्या होगा।
सखियो के कहने पर दानघाटी  के पास ही एक  धर्मशाला मे उन्होने  विश्राम  किया।जब प्रातःकाल ढाई, तीन बजेऑख खुली, तो सभी स्नान आदि करके परिक्रमा  को चल दी।फिर  भी काफी अधेरा होने के कारण  सभी को डर भी लग रहा था ।
और  मन ही मन भगवान  को याद  कर रही थी कि अब  तुम ही हमारी रक्षा  करो प्रभू ।
कुछ ही दूर चलने पर एक सात ,आठ साल के बालक ने मेरी अम्मा का हाथ पकड लिया , सभी डर गयी कि ऐ इतनी रात मे किसका बच्चा है ।
उससे उसका नाम  और  किसके साथ आया है ,तो उसने अपना नाम-- 
तुतलाती वणी मे शामला बताया और  कहा कि मै तो तुम्हारे साथ आया हु,।
कुछ  सखिया डरने लगी ,और कुछ कहने लगी ,कोई  नही दिन  निकलने पर इसे पुलिस  चौकी पर छोड देगे बेचारा अपनो से बिछड गया है।
और  सभी भजन मे मग्न हो गयी, जैसे ही प्रातःकाल  का कुछ  उजाला सा महसूस हुआ ,अम्मा  का हाथ अकस्मात  खाली हो गया। 
ऐसा साक्षात् चमत्कार  देख सभी हैरान  होकर स्वयं  को कोसने लगी ---- हाय मुझे पता भी नही था कि हमारे साथ सावरा स्वयं चल रहा है,और  मेरी अम्मा  को तू तो बडी भाग्यशाली है , कि तेरा हाथ पकड कर कान्हा ने पकड लिया।
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रचनाएँ
जाकी रही भावना जैसी
5.0
Part1 ये कहानी मेरे परिवार के साथ  घटित घटना है, मेरा जन्म श्रीकृष्ण की जन्म स्थली मथुरा मे हुआ। बचपन  से ही भक्ति भाव वाला माहौल  होने के कारण हमारे सभी कार्य  व इच्छाऐ प्रभू को ही पूर्ण  रुप  से समर्पित  थी, मेरी अम्मा (दादी)सुबह  जल्दी नहाकर  अपने मन्दिर  के लड्डूगोपाल  जी को सजाने मे हमे भी लगा लेती थी,और  पूरे घर  मे उत्सव  का माहौल  पूरे दिन  बना रहता, हमारी माता जी भी सुबह  से ही रसोई मे अलग  अलग  प्रकार  का प्रसाद  बनाती और  लड्डूगोपाल  जी के समक्ष  अर्पित  करती।फिर  बाद मे हमे प्रसाद  खाने को मिलता। प्रतिदिन  जो भी रसोई  मे सात्विक भोजन  बनता उसको भी सबसे पहले एक बच्चे  की तरह उनका प्रसाद  लगाया जाता। लड्डूगोपाल  जी का जब श्रंगार  किया जाता ,तो कभी वह प्रसन्न  दिखाई  देते तो कभी वह मुँह फुलाकर रूठे हुऐ दिखाई  देते । हमे समझ  आ जाता कि आज गोपाल जी गुस्सा है ,तो उनको सजाने के लिए फूल , तुलसी जी ,व अन्य  प्रकार  के प्रसाद  बनाये जाते,और  फिर  वह हमे कुछ  प्रसन्न से नजर  आते। हमारा निवास स्थान मथुरा मे होली गेट  के अन्दर  सतगडा मे जबलपुर  वाली कुंज  था। वही निकट ही सौ कदम की दूरी पर  द्वारकाधीश  जी का मन्दिर  था । मेरी अम्मा का  पहले अपने लड्डूगोपाल  जी की सेवा करके बाद मे द्वारकाधीश जी की मंगला आरती मे जाने  का नियम  था। जब अम्मा 79 वर्ष के आसपास  थी तो काफी बीमार हुई ,ओर उनका नियम  छुट गया।और उन्होने  खाना -पीना भी छोड दिया। 5,6दिन हो गये,चारपाई  पर लेटी- लेटी ही प्रभू का भजन  ,ध्यान  करती।एक दिन  एक पडोस का व्यक्ति अम्मा के पास आया  और उनसे बात  करने लगा,पर अम्मा  ने उसकी बात पर  मौन ही रही।जब  अन्त मे वह मजाक के रूप मे बोला --चलो अम्मा मंगला आरती करा लाऊ? अम्मा ने तुरंत  ही उत्तर  दिया कि तू क्या मंगला कराएगा । मेने तो कर लिये दर्शन। व्यक्ति  बोला अच्छा--तो बताओ  आज के दर्शन  कैसे है? अम्मा  बोली --आज गुलाबी पोशाक मे है द्वारकाधीश ,और  कल पीली पोशाक  मे मनोहर  छवि थी इतना सुन कर व्यक्ति  दंडवत  करने लगा।और  आश्चर्य चकित होकर चला गया। हमे नही पता था कि अब अम्मा जाने वाली है ,हम बच्चे  प्रतिदिन  अम्मा  का इम्तिहान  लेने लगे,पहले अम्मा  से पूछते द्वारकाधीश  के श्रंगार  के बारे मे और  फिर  अम्मा  के कथन को आजमाने के लिए  मन्दिर  मे भागकर जाते।

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