Part1 ये कहानी मेरे परिवार के साथ घटित घटना है, मेरा जन्म श्रीकृष्ण की जन्म स्थली मथुरा मे हुआ। बचपन से ही भक्ति भाव वाला माहौल होने के कारण हमारे सभी कार्य व इच्छाऐ प्रभू को ही पूर्ण रुप से समर्पित थी, मेरी अम्मा (दादी)सुबह जल्दी नहाकर अपने मन्दिर के लड्डूगोपाल जी को सजाने मे हमे भी लगा लेती थी,और पूरे घर मे उत्सव का माहौल पूरे दिन बना रहता, हमारी माता जी भी सुबह से ही रसोई मे अलग अलग प्रकार का प्रसाद बनाती और लड्डूगोपाल जी के समक्ष अर्पित करती।फिर बाद मे हमे प्रसाद खाने को मिलता। प्रतिदिन जो भी रसोई मे सात्विक भोजन बनता उसको भी सबसे पहले एक बच्चे की तरह उनका प्रसाद लगाया जाता। लड्डूगोपाल जी का जब श्रंगार किया जाता ,तो कभी वह प्रसन्न दिखाई देते तो कभी वह मुँह फुलाकर रूठे हुऐ दिखाई देते । हमे समझ आ जाता कि आज गोपाल जी गुस्सा है ,तो उनको सजाने के लिए फूल , तुलसी जी ,व अन्य प्रकार के प्रसाद बनाये जाते,और फिर वह हमे कुछ प्रसन्न से नजर आते। हमारा निवास स्थान मथुरा मे होली गेट के अन्दर सतगडा मे जबलपुर वाली कुंज था। वही निकट ही सौ कदम की दूरी पर द्वारकाधीश जी का मन्दिर था । मेरी अम्मा का पहले अपने लड्डूगोपाल जी की सेवा करके बाद मे द्वारकाधीश जी की मंगला आरती मे जाने का नियम था। जब अम्मा 79 वर्ष के आसपास थी तो काफी बीमार हुई ,ओर उनका नियम छुट गया।और उन्होने खाना -पीना भी छोड दिया। 5,6दिन हो गये,चारपाई पर लेटी- लेटी ही प्रभू का भजन ,ध्यान करती।एक दिन एक पडोस का व्यक्ति अम्मा के पास आया और उनसे बात करने लगा,पर अम्मा ने उसकी बात पर मौन ही रही।जब अन्त मे वह मजाक के रूप मे बोला --चलो अम्मा मंगला आरती करा लाऊ? अम्मा ने तुरंत ही उत्तर दिया कि तू क्या मंगला कराएगा । मेने तो कर लिये दर्शन। व्यक्ति बोला अच्छा--तो बताओ आज के दर्शन कैसे है? अम्मा बोली --आज गुलाबी पोशाक मे है द्वारकाधीश ,और कल पीली पोशाक मे मनोहर छवि थी इतना सुन कर व्यक्ति दंडवत करने लगा।और आश्चर्य चकित होकर चला गया। हमे नही पता था कि अब अम्मा जाने वाली है ,हम बच्चे प्रतिदिन अम्मा का इम्तिहान लेने लगे,पहले अम्मा से पूछते द्वारकाधीश के श्रंगार के बारे मे और फिर अम्मा के कथन को आजमाने के लिए मन्दिर मे भागकर जाते।