पथ रहा एक चट्टान सदृश, पर पथिक अनेकों बन आये,
मानव आये दानव आये, चींटी आयी पंक्षी आये,
कोई पथ पर चलते चलते, जीवन दायिनी गंगा लाये,
मानव को मनु पथ से लाये, सद्कर्म ज्ञान माधव लाये,
पथ रहा एक चट्टान सदृश,(१)
श्री राम चले जब पथ पर तो, आदर्श मनुज का ध्येय बना,
सिद्धार्थ चले जब पथ पर तो, सम्मान सहज बुद्धत्व बना,
जब चले भीम इस पथ पर तो,भारत का सिद्ध विधान बना,
चल कर के गांधी इस पथ पर, सत्याग्रह से स्वराज लाये,
पथ रहा एक चट्टान सदृश,पर(२)
पथ का अनुगामी सदा सफल, कांटों संघर्षों से लड़ता,
नदियां चलतीं पवनें चलती,सोचो बिन पथ के क्या चलता,
पथ का महत्व तब ही होता,जब पथिक पथो पर है चलता,
बिन पथिक का पथ-पथ बिना पथिक, एक दूजे की पहचान बने।
पथ रहा एक चट्टान सदृश,(३)
दोनों का धर्म अलग सा है, एक स्थिर है एक अस्थिर है,
पर पथ तो देता ज्ञान एक, पर पथिक निरंतर चंचल है,
अज्ञानी पथ का ज्ञान समझ, अंगुलिमाल बन जाता है,
सद्ज्ञानी पथ के ज्ञानों से, श्रीरामचरित तुलसी लाये,
पथ रहा एक चट्टान सदृश, (४)
क्या ज्ञानी क्या अज्ञानी क्या,सब चलें पथो पर साधक बन,
संदेश दिया संदेश लिया, सामर्थ्य बने पथ पर जन-जन,
पथ तो है वाहक साधन का, पर पथी बना साधक जन-मन,
पथ बना रहा न डिगा कभी, पुस्ते आंई नस्लें आंई,
पथ रहा एक चट्टान सदृश (५)