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पथ और जीवन

22 सितम्बर 2022

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पथ ही मर्यादा जीवन की,बिन पथ जीवन क्या जीवन है,

जो बना न पथ काअनुगामी,वह दूर्जनहै वह कलिमल है

आओ पथ को तैयार करें, क्योंकि पथ निर्मल अविरल है,

पथ ही जीवन का निर्धारक,जीवन का चक्र स्वयं पथ है।

इस पथ के रज के कण-कण में,श्रम साध्य सदा जीवन ही है

                                   पथ ही मर्यादा जीवन की.....(२)

हे महादेव हे नीलकंठ,           हे सत्य सनातन सदा शांत,

इस जीवन पथ के निश्चय को,दृढ शुद्ध सदा कर दो प्रशांत,

जीवन हो निर्मल निर्विकार,सत्यांश सत्य और प्रभाकांत,

पथ के पथरीले दूर्गम विकार,न बने रोध इस जीवन के।

                                  पथ ही मर्यादा जीवन की......(३)

जीवन एक मर्यादा सी है,जो उग्र,उष्ण और प्रलयंकर,

पथ की भी अपनी मर्यादा ,जो सहज,शांतऔर जीवंकर,

चर-अचर सभी पथ के गामीं, जिनमें जीवन  संचारित है,

पथ रहे सदा नित निर्माणक,पर भाव बोध निर्धारित है,

                                पथ ही मर्यादा जीवन की........(४)

आओ स्वीकार करे पथ को,जो सदा लक्ष्य पर ले जाता,

पथ ही तो वह निर्धारक है,जो जीवन को पथ पर लेआता,

वह मुरलीधर ही हैं जिसने,जीवन रहस्य को प्रगट किया,

आओ संकल्प करें पथ पे,जीवन संघर्ष न रुकने पाये।

                             पथ ही मर्यादा जीवन की..........(५)

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जीवन और परिवर्तन 

यह जीवन एक पहेली हैं ,जो    उलझी उलझी रहती है,

जितना सुलझावो जीवन को, उतनी उलझी सी रहती है।

अंतर्मन के संदर्भों को,   समझा है कौन? जाना है कौन?

यह बनी रही है अंतहीन,   जीवन तुकांत पाया है कौन?

कितने आये सुलझाने को,पर था रहस्य और है रहस्य,

यह है रहस्य का खुद रहस्य,जो खुद का भेदन खुद करती।

                                      यह जीवन एक पहेली हैं(१)

हम क्यों आये? कैसे आये,        कोई बतलाएगा कैसे,      

हम रत है खुद के निर्माणों में, कोई समझाएगा कैसे?

बचपन आया खेला, दौड़ा,यौवन आया सीखा मस्ती,

पर नहीं समझ में यह आया, बचपन यौवन में क्यों मरती,

तब चला ढूंढने तर्को को, कुछ तर्क सदा बनती रहती।

                                       यह जीवन एक पहेली है(२)

                                        

 जीवन आया आयी बहार,तब जगे चेतना के नव स्वर,

 मन मस्त रहा तन पस्त हुआ,जब लगे ढूंढने थल-अम्बर,

 नव श्रृजन और श्रृंगार हुए,नव अन्वेषण नव आश जगे,

 चहूं ओर ध्यान शिक्षा फैली,नव तर्क और नव पुष्प लगे,

 धन वैभव से लद गई धरा,    मानव की नई रंगोली है  ,

                               

                                      यह जीवन एक पहेली है (३)

 जब जीवन चला चली संस्कृति, कर्तव्ययुक्त संस्कार बने,

 तब मानव बना मनुज वत्सल, परिवार बना केन्द्रित जीवन,

 जीवन बदला शैली बदली, मानव का ज्ञान विज्ञान बना,

 सब सुख आए वैभव आया,अब खोज शांति का ध्येय बना,

 सब परिवर्तन क्रमशः आए, निर्माणों के इस जीवन में।

                                      यह जीवन एक पहेली है।(४)

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मै उमेश कुमार आपके इस विद्वानों के समूह का नया सदस्य हूं। आप सभी सम्मानित लोगों को मेरा सप्रेम नमस्कार 🙏🌹🙏 आशा है कि आप सभी विद्ववत जन मुझे इस समूह के छोटे और नये सदस्य के रूप में स्वीकार करेंगे। कविता लिखना मेरा बचपन की हठधर्मिता रही है और इसी कविता के द्वारा मै आप सभी से जुड़ रहा हूं। धन्यवाद 🌹

22 सितम्बर 2022

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रचनाएँ
मेरे मृदंग
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यह कविता संग्रह मेरे मन का सृजन है जो सामाजिक परिवेश में दिखाई देने वाले विषय जैसे पथ(रास्ता),देश, पृथ्वी,नारी आदि पर सृजित किया गया है जो पूर्णतः मौलिक विचार से प्रेरित है। मेरी कविता सामाजिक विषयों के महत्व और प्रासंगिकता को लेकर समर्पित है। ‌~ डॉ. उमेश कुमार
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22 सितम्बर 2022
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