आज वहीं मै ठहरा सा हूं, जहां पथिक बन पथगामी था।
क्या है लक्ष्य बनाया मैंने, बिना सारथी पूर्ण न होता,
मन कठोर पर दृग चंचल है, हृदय अडिग पथ पर ढ़केलती,
समय बहुत निष्ठुर परिवर्तन, साहस से पग पर उड़ेलती,
चले बहुत विश्राम न ढूंढ़ा, पथ का मै अविचल स्वामी हूं।
आज वहीं मै ठहरा सा हूं,(१)
उष्ण,गलन, परिवर्तक सावन,मिले मार्ग के अनुगामी बन,
मन संसय से देख रहा था, क्या ये सच्चे पथिक मित्र जन,
लगा रहा पथ पर चींटी सा, राहों का मै अविरल गामी,
आज वहीं मै ठहरा सा हूं,(२)
सज्जन,दुर्जन,निर्बल मानव, बने हमारे पथी प्रदर्शक,
पथ पर मै चलता ही जाता, हठी जीव के अर्थ निरर्थक,
डरा नहीं मै डिगा नहीं मै, अन्त:मर्म सिंधु अनुगामी,
आज वहीं मै ठहरा सा हूं, ( ३)
क्या है पथ?पथ का रहस्य,मै मथूं स्वयं के प्रिय मथनी से,
पथ पर चलते हुए सदा ही , रहा ढूंढता मन रहस्य से,
मन अंतस्थल बन वसुधा से,पथ रहस्य से पथ रहस्य से,
आज वहीं मै ठहरा सा हूं, (४)
पथ तो है निश्चल अविनाशी, राही को मंजिल पहुंचता,
पथ पर तो पथ गांमी चलता,पथ सदैव जीवन को भाता,
बिन पथ का जो राही बनता, इस रहस्य से पार न पाता,
आज वहीं मै ठहरा सा हूं, (५)