सत्य की खोज में,निकला पथिक हूं,
पता नहीं क्यों आज मै, इतना ब्यथित हूं?
तन मन अचम्भित है,रोम रोम पुलकित है,
ढूंढ रहा हूं क्या मैं,मन भी अचंभित है,
इस अशांत रस का मै, रसिया कथित हूं।
पता नहीं क्यों आज मै इतना ब्यथित हूं?(१)
शास्त्रों को पढ़ता हूं, गीतों को गाता हूं,
मंदिर और मस्जिद मैं, गुरुद्वारे जाता हूं,
इस गुप्त खोज का,मै खोजी पथिक हूं।
पता नहीं क्यों आज मैं,इतना ब्यथित हूं?(२)
मथ रहा है मन मेरा,ब्योंम की मथानी से,
मथ रहा है कौन मुझे वारिधि के पानी से?
इस दधिधानी का मै, बिलोय मथित हूं।
पता नहीं क्यों आज मै, इतना ब्यथित हूं?(३)
सत्य क्या है?कौन सत्य? सत्य ही बताएगा,
इस परम सत्य को, सास्वत समझाएगा।
बीच जीवन मृत्यु के,उलझा मनुष्य हूं!
पता नहीं क्यों आज मैं, इतना ब्यथित हूं?(४)