तन की पवित्रता से अधिक मन की पवित्रता महत्त्वपूर्ण है।
जो तन से पवित्र होते हैं और मन मैला होता है वे कुटिल होते हैं नाकि पवित्र।
तन की पवित्रता स्वास्थ्यवर्धक है जबकि मन की पवित्रता परमार्थवर्धक है।
दुःख में काम आने वाला मन से पवित्र होता है।
जो दूजों के दुःख में काम नहीं आता है वह कभी मन से पवित्र नहीं हो सकता है।