shabd-logo

वर्तमान

28 मई 2016

157 बार देखा गया 157
featured image

‘वर्तमान में जीने वाला ही भविष्य को अच्छा बना पाता है। अतीत का चिन्तन कुछ न करने को प्रेरित करता है। जो अतीत से सीखकर वर्तमान को  सुधार  लेता  है  वह अवश्य अच्छे भविष्य का निर्माता होता है। समस्याओं को एकत्र करने वाला ही अपना वर्तमान व भविष्य तो बिगाड़ता  ही है और  साथ में  दुःखद अतीत का जनक बन जाता है।’- ज्ञानेश्वर 

डाॅ कंचन पुरी

डाॅ कंचन पुरी

वर्तमान में जीने में ही सुख है

29 मई 2016

8
रचनाएँ
anubhutgyansutra
0.0
अनुभूत ज्ञान जीवनोपयोगी होता है!
1

मृत्यु भय से निवृत्ति कैसे हो?

26 मई 2016
0
3
2

‘मृत्यु सार्वभौमिक सत्य है। जो जन्मता है वह मृत्यु को अवश्य प्राप्त होता है। बनना-बिगड़ना प्रकृति का नियम है। मृत्यु से कोई नहीं बच पाता है। मृत्यु का भय उसे ही सताता है जो इस सत्य को स्वीकार नहीं करता है। काल से कोई नहीं बच सकता है क्योंकि यह सभी  को मृत्यु  के द्वारा  वश में  कर  लेता है।’-ज्ञानेश

2

वर्तमान

28 मई 2016
0
2
1

‘वर्तमान में जीने वाला ही भविष्य को अच्छा बना पाता है। अतीत का चिन्तन कुछ न करने को प्रेरित करता है। जो अतीत से सीखकर वर्तमान को  सुधार  लेता  है  वह अवश्य अच्छे भविष्य का निर्माता होता है। समस्याओं को एकत्र करने वाला ही अपना वर्तमान व भविष्य तो बिगाड़ता  ही है और  साथ में  दुःखद अतीत का जनक बन जाता

3

दुःखी क्यों

29 मई 2016
0
3
1

‘संकीर्ण सोच हमें सदैव दुःखी बनाती है इसीलिए सदैव विस्तृत सोच रखनी चाहिए। कभी किसी से तुलना न करें तुलना से ईर्ष्‍या पनपती है और दुःख पास आ जाता है। सदैव रबर बनकर गलत को मिटाने का प्रयास करेंगे तो दुःख पास फटकेगा नहीं। दुःख से जो सीखता है  वो फिर दुःखी नहीं होता है।  मन सच्चा और साफ हो तो नित्य सुख 

4

आलोचना

10 जून 2016
0
3
1

‘आलोचना से घबराकर व्यक्ति अपने लक्ष्य को पाने के लिए तत्पर ही नहीं होता है क्योंकि वह भय खाता है कि उसकी बदनामी न हो जाए। जो ऐसा  करते हैं  वे कदापि आगे नहीं बढ़ पाते हैं। आलोचना को सुधार के रूप में लेंगे तो निश्चित रूप से आप आगे ही बढ़ेंगे और बाधाओं को दूर कर पाएंगे। आलोचना से जो अनुकरणीय हो उसे स्वी

5

जीत

15 जून 2016
0
2
0

जीवन संघर्ष का नाम है राह के रोड़े हटाने के लिए संघर्ष तो हम सब की नियति है। हारना कभी नहीं चाहिए क्योंकि हार के बाद ही जीत है।

6

पवित्रता

8 अगस्त 2016
0
3
0

तन की पवित्रता से अधिक मन की पवित्रता महत्त्वपूर्ण है। जो तन से पवित्र होते हैं और मन मैला होता है वे कुटिल होते हैं नाकि पवित्र। तन की पवित्रता स्वास्थ्यवर्धक है जबकि मन की पवित्रता परमार्थवर्धक है। दुःख में काम आने वाला मन से पवित्र होता है। जो दूजों के दुःख में काम नहीं आता है वह कभी मन से पवित

7

विश्वास

10 अगस्त 2016
0
6
1

जब व्यक्ति का अपनी सोच और उसे पूर्ण करने का पूर्ण विश्वास होता है तो वह अवश्य सफल होता है। प्रत्येक प्रयास सफल होने की सीख देता है और आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करता है। विश्वास से ही परिश्रम करने का साहस मिलता है और सफलता प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। विश्वास जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है

8

अहंकार

13 अगस्त 2016
0
3
0

अहंकार व्यक्ति को पतित करता है इसीलिए अंकारी का सिर सदैव नीचा होता है। अहंकारी दूसरों की सुनता नहीं है इसलिए सत्य सदैव उससे छिप रहता है। घट-घट में ईश्वर व्याप्त है जो यह समझता है उसे सबमें ईश्वर के दर्शन होते हैं  और उससे अहंकार कोसों दूर हो जाता है, ऐसे में वह कुकर्म भी नहीं करता है। तब सहज, सरल व 

---

किताब पढ़िए