चल, मुझे उड़ान भरने दे।
पिंजरे का दरवाजा खुलने दे।।
हो गयी उम्र की दहलीज पार।
धुंधली सी है, सपनों की नाव।
चल, इसे किनारे करने दे ।।
चल, मुझे उड़ान भरने दे।
पिंजरे का दरवाजा खुलने दे।।
कठपुतली का खेल हो गया ।
हो गया तिल-तिल जलना ।
ज्ञान का दिया जलाने दे ।।
चल, मुझे उड़ान भरने दे।
पिंजरे का दरवाजा खुलने दे।।
बहोत हो गयी घुटन अंधेरे की।
आवाज दबी सिसकियों की ।
रोशनियों में जगमगाने दे ।।
चल, मुझे उड़ान भरने दे।
पिंजरे का दरवाजा खुलने दे।।
अनुभवों की दुशाला ओढ़कर,
सपनों के पंख लगाकर ,
खुले आसमान में उड़ने दे ।।
चल, मुझे उड़ान भरने दे।
पिंजरे का दरवाजा खुलने दे।।