पितृपक्ष , एक पखवारा जब ऐसा माना जाता है कि हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं ।उनके लिए इस पखवारे भर के लिए स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते हैं ,और वो अपनों से मिलने ,उन्हें अपने आशीष देने के लिए आते हैं ।
हमारे जो पूर्वज होते हैं उन्हें इस पितृपक्ष में तर्पण कर जल देकर अपना कर्तव्य निभाया जाता है , उनकी श्राद्ध कर ब्राह्मणों को भोजन खिलाया जाता है और अग्निदेव को पूडी़ ,खीर ,इत्यादि अर्पण की जाती है ,ये मांगकर कि हमारे पूर्वज जहाँ हों उन्हें मिले ।
ऐसा माना जाता है कि ये सब करने से हमारे पूर्वज जहाँ होते हैं ,जिस योनि में होते हैं वहाँ उन्हें भोजन,पानी मिल जाता है किसी न किसी रूप में ।
जब पितृपक्ष प्रारंभ होता है तो घर की देहरी लीप कर उसपर जल ,अक्षत ,फूल इत्यादि चढा़कर पूर्वजों को आने के लिए स्वागत किया जाता है ।
अंत में पितृविसर्जन पर पितरों को विदा किया जाता है ये कहकर कि फिर आकर अपना आशीष दें ।